Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ द्वितीय स्थानपद [ 125 'भवणेस कप्पेस विमाणेस' =भवनपतियों के भवनों में, कल्पों देवलोकों में, तथा विमानों- सौधर्मादिकल्पगत विमानों में, तथा इसके प्रस्तटों एवं विमानावलियों में जल बावडी आदि में होता है। ग्रेवेयक आदि विमानों में बावड़ियां नहीं होतीं, अतः वहाँ जल नहीं होता।' तेजस्कायिकों के स्थानों का निरूपण--- 154. कहि णं भंते ! बादरतेउकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! सटाणेणं अंतोमणुस्सखेत्ते अड्डाइज्जेसु दीव-समुद्देसु निवाघाएणं पण्णरससु कम्मभूमीसु, वाघायं पडुच्च पंचसु महाविदेहेसु / एत्थ णं बादरतेउक्काइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता। उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्घाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। [154 प्र.] भगवन् ! बादर तेजस्कायिक-पर्याप्तक जीवों के स्थान कहाँ (-कहाँ) कहे गए हैं ? [154 उ.] गौतम ! स्वस्थान की अपेक्षा से- मनुष्यक्षेत्र के अन्दर ढाई द्वीप-समुद्रों में, निर्व्याघात (बिना व्याघात) से पन्द्रह कर्मभूमियों में, व्याघात की अपेक्षा से-पांच महाविदेहों में (इनके स्थान हैं / ) इन (उपर्युक्त) स्थानों में बादर तेजस्कायिक-पर्याप्तकों के स्थान कहे गए हैं। उपपात की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में, समुद्घात की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में, तथा स्वस्थान की अपेक्षा से (भी) लोक के असंख्यातवें भाग में (वे) होते हैं। 155. कहि णं भंते ! बादरतेउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! जत्थेव बादरतेउकाइयाणं पज्जतगाणं ठाणा तत्थेव बादरतेउकाइयाणं अपज्जत्तगाणं ठाणा पन्नत्ता। उबवाएणं लोयस्स दोसु उड्ढकवाडेसु तिरियलोयतट्टे य, समुग्घाएणं सव्वलोए, सटाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे। [155 प्र.] भगवन् ! बादर तेजस्कायिकों के अपर्याप्तकों के स्थान कहाँ (-कहाँ) कहे गए हैं ? [155 उ.] गौतम ! जहाँ बादर तेजस्कायिकों के पर्याप्तकों के स्थान हैं वहीं बादर तेजस्कायिकों के अपर्याप्तकों के स्थान कहे गए हैं / उपपात की अपेक्षा से—(वे) लोक के दो ऊर्ध्वकपाटों में तथा तिर्यग्लोक के तट्ट (स्थालरूप -- -- -- -- -- 1. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक 74-75 2. पाठान्तर-तोसु वि लोगस्स असंखेज्जतिभागे 3. पाठान्तर–दोसुद्धक्क Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org