Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चतुर्थ स्थितिपदा [343 [3] लंतए पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहणणं दस सागरोवमाइं अंतोमुत्तूणाई, उक्कोसेणं चोद्दस सागरोवमाइं अंतोंमुहुत्तूणाई। [420-3 प्र.] भगवन् ! लान्तककल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [420-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम दस सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त कम चौदह सागरोपम की है। 421. [1] महासुक्के देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चोद्दस सागरोवमाइं, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोक्माई। [421-1 प्र.] भगवन् ! महाशुक्रकल्प में देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [421-1 उ.] गौतम ! जघन्य चौदह सागरोपम की तथा उत्कृष्ट सत्तरह सागरोपम की है। [2] महासुक्के अपज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेण वि उक्कोसेण वि अंतोमुहत्तं / __ [421-2 प्र.] भगवन् ! महाशुक्रकल्प में अपर्याप्त देवों को स्थिति कितने काल की कही गई है? 021-2 प्र.] भगवन ! [421-2 उ.] गौतम ! जघन्य भी और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहुर्त को है। [3] महासुक्के पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं चोद्दस सागरोवमाइं अंतोमुहत्तूणाई, उक्कोसेणं सत्तरस सागरोबमाई अंतोमुत्तूणाई। [421-3 प्र.] भगवन् ! महाशुक्रकल्प में पर्याप्त देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [421-3 उ.] गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त कम चौदह सागरोपम की और उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त कम सत्रह सागरोपम को है। 422. [1] सहस्सारे देवाणं पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सत्तरस सागरोवमाई, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमाई। [422-1 प्र.] भगवन् ! सहस्रारकल्प में देवों की स्थिति कितने काल तक की कही गई है ? [422-1 उ.] गौतम ! जघन्य सत्तरह सागरोपम की और उत्कृष्ट अठारह सागरोपम [2] सहस्सारे पज्जत्ताणं पुच्छा। गोयमा ! जहणेण वि उपकोसेण वि अंतोमुहत्तं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org