________________ 486] [प्रज्ञापनासून 1576. [1] अस्थि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कज्जति ? हंता! अस्थि / कम्हि णं भंते ! जीवाणं मुसावाएणं किरिया कज्जति ? गोयमा ! सम्बदम्वेसु / [1576-1 प्र.] भगवन् ! क्या जीवों को मृत्रावाद (के अध्यवसाय) से (मृषावाद-) क्रिया लगती है ? [उ.] हाँ, गौतम ! मृषावाद-क्रिया संलग्न) होती है। [प्र.) भगवन् ! किस विषय में (मृषावाद के अध्यवसाय से मृषावाद-क्रिया लगती है ? [उ.] गौतम ! सर्वद्रव्यों के (विषय) में (मृषा० क्रिया लगती है।) [2] एवं णिरंतरं रइयाणं जाच वेमाणियाणं / [1576-2] इसी प्रकार (पूर्वोक्त कथन के समान) नै रयिकों से लेकर लगातार यावत् वैमानिकों (तक) का (कथन करना चाहिए।) 1577. [1] अस्थि णं भंते ! जीवाणं अदिण्णादाणेणं किरिया कज्जति ? हंता अस्थि / कम्हि णं भंते ! जीवाणं अदिण्णादाणेणं किरिया कज्जइ ? गोयमा / गहण-धारणिज्जेसु दम्वेसु / [1577-1 प्र.] भगवन् ! क्या जीवों को अदत्तादान (के अध्यवसाय) से प्रदत्तादान(क्रिया) लगती है ? [उ.] हाँ, गौतम ! (अदत्तादान-क्रिया संलग्न ) होती है / [प्र.] भगवन् ! किस (विषय) में जीवों को अदत्तादान (के अध्यवसाय) से (प्रदत्तादान-) क्रिया लगती है ? [उ.] गौतम ! ग्रहण करने और धारण करने योग्य द्रव्यों (के विषय) में (यह क्रिया होती है।) [2] एवं रहयाणं णिरंतरं जाव बेमाणियाणं / [1577-2] इसी प्रकार (समुच्चय जीवों के आलापक के समान) नरयिकों से लेकर लगातार वैमानिकों तक की (अदत्तादान क्रिया का कथन करना चाहिए 1) 1578. [1] अस्थि णं भंते ! जीवाणं मेहुणेणं किरिया कज्जइ ? हंता! अस्थि / कम्हि णं भंते ! जीवाणं मेहुणेणं किरिया कज्जति ? गोयमा! रूबेसु वा स्वसहगतेसु वा दम्वेसु / [1578-1 प्र.] भगवन् ! क्या जीवों को मैथुन (के अध्यवसाय) से (मैथुन-) क्रिया लगती है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org