________________ [प्रज्ञापनासूत्र आरम्भिको आदि पांच क्रियाओं को परिभाषा-सचित्त पृथ्वी, जल, अग्नि आदि का उपमर्दन करना आरम्भ कहलाता है / प्रारम्भ से पहले दो क्रम होते हैं---संरम्भ और समारम्भ का / संरम्भ कहते हैं--संकल्प को, समारम्भ कहते हैं—परिताप क्रिया को / जिसका प्रयोजन या कारण प्रारम्भ हो, वह आरम्भिको क्रिया कहलाती है। पारिग्रहिकी-धर्मोपकरण को छोड़ कर वस्तुओं को स्वीकार और उन पर मूर्छा परिग्रह है / परिग्रह से निष्पन्न पारिग्रहिकी / मायाप्रत्यया-माया-कपट-अनार्जव / माया जिसका प्रत्यय-कारण हो, वह मायाप्रत्यया / अप्रत्याख्यान-प्रत्याख्यान कहते हैं- त्याग, नियम या हिंसादि पाश्रवों से विरति को। विरति या त्याग के परिणामों का अभाव-अप्रत्याख्यान है। अप्रत्याख्यानजनित क्रिया-अप्रत्याख्यानक्रिया है। मिथ्यादर्शनप्रत्यया-मिथ्यादर्शन-विपरीत श्रद्धान जिसका कारण हो, उसे मिथ्यादर्शनप्रत्यया कहते हैं।' इन क्रियाओं में से किस क्रिया का कौन स्वामी या अधिकारी होता है, यह सू. 1622 से 1626 तक में बताया गया है / प्रारम्भिकी क्रिया प्रमत्तसंयतों में से किसी को उस समय होती है जब वह प्रमाद होने से कायदुष्प्रयोगवश पृथ्वी आदि का उपमर्दन करता है। पारिग्रहिकी क्रिया देशविरत को होती है, क्योंकि वह परिग्रह धारण करके रखता है। अप्रत्याख्यानी क्रिया सब को नहीं, उस व्यक्ति को होती है, जो कुछ भी प्रत्याख्यान नहीं करता। मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया उस को होती है, जो देव, गुरु, धर्म और शास्त्र के प्रति अश्रद्धा, अभक्ति, अविनय करता है / चौबीस दण्डकों में क्रियाओं की प्ररूपणा 1627. [1] रइयाणं भंते ! कति किरियाप्रो पण्णत्तायो ? गोयमा ! पंच किरियाप्रो पण्णत्ताओ। तं जहा-आरंभिया जाव मिच्छादसणवत्तिया। [1627-1 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों को कितनी क्रियाएँ कही गई हैं ? (उ.] गौतम ! (उनके) पांच क्रियाएँ कही गई हैं। वे इस प्रकार-प्रारम्भिकी यावत् मिथ्यादर्शनप्रत्यया। [2] एवं जाव बेमाणियाणं / [1627-2] इसी प्रकार (नरयिकों के समान) यावत् वैमानिकों तक (प्रत्येक में पांच क्रियाएँ समझनी चाहिए / ) विवेचन–समस्त संसारी जीवों में पांच क्रियाओं की प्ररूपणा-प्रस्तुत सूत्र (1627) में चौबीस दण्डकवर्ती जीवों में प्रारम्भिकी आदि पांचों क्रियाओं की प्ररूपणा की गई है। जीवों में क्रियाओं के सहभाव को प्ररूपणा 1628. जस्स गं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तस्स पारिग्गहिया किरिया कज्जति ? जस्स पारिग्गहिया किरिया कज्जइ तस्स आरंभिया किरिया कज्जति ? 1. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र 447 2. वही, म. वत्ति, पत्र 887 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org