Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ उनतीसको उपयोगपव] [157 [1928 प्र.] भगवन् ! जीव साकारोपयुक्त होते हैं या अनाकारोपयुक्त ? {1628 उ.] गौतम ! जीव साकारोपयोग से उपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयोग से उपयुक्त भी। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि जीव साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं ? उ.] गौतम ! जो जीव प्राभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान तथा मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान एवं विभंगज्ञान उपयोग वाले होते हैं, वे साकारोपयुक्त कहे जाते हैं और जो जीव चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन के उपयोग से युक्त होते हैं, वे अनाकारोपयुक्त कहे जाते हैं। इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि जीव साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी। 1926. रइया णं भंते ! कि सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता? गोयमा ! रइया सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि / से केपट्टेणं भंते ! एवं बच्चति ? गोयमा ! जे गं गैरइया आभिणिबोहियणाण-सुत-प्रोहिणाण-मतिअण्णाण-सुतअण्णाणविभंगणाणोवउत्ता ते णं णेरइया सागारोवउत्ता, जे णं रइया चक्खुदंसण-अचवखुदंसणप्रोहिदसणोवउत्ता ते णं गैरइया अणागारोवउत्ता, से तेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति जाव सागारोवउत्ता वि अणागारोवउत्ता वि। [1926 प्र.] भगवन् ! नेरयिक साकारोपयुक्त होते हैं या अनाकारोपयुक्त ? [1626 उ.] गौतम ! नैरयिक साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि नैरयिक साकारोपयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं ? [उ.] गौतम ! जो नै रयिक आभिनिबोधिकज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान तथा मति-अज्ञान, श्रुतअज्ञान और विभंगज्ञान के उपयोग से युक्त होते हैं, वे साकारोपयुक्त होते हैं और जो नैरयिक चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन और अवधिदर्शन के उपयोग से युक्त होते हैं, वे अनाकारोपयुक्त होते हैं / इस कारण से, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि नै रयिक साकारोयुक्त भी होते हैं और अनाकारोपयुक्त भी होते हैं। 1930. एवं जाव थणियकुमारा। [1630] इसी प्रकार का कथन यावत् स्तनितकुमार तक के विषय में करना चाहिए। 1631. पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा ! तहेव जाव जे णं पुढविकाइया मतिअण्णाण-सुतअण्णाणोवउत्ता ते णं पुढविकाइया सागारोवउत्ता, जे णं पुढविकाइया अचक्खुदंसणोवउत्ता ते णं पुढविक्काइया अणागारोवउत्ता, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति जाव वणप्फइकाइया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org