________________ छत्तीसवाँ समुद्घातपद [249 जिसके होता है, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं / प्रश्न के समय में जो नारक अपने भव के अन्तिम काल में वर्तमान है, वह अपनी नरकायु का क्षय करके कषायसमुद्घात किये बिना ही नरकभव से निकलकर अनन्तर मनुष्यभव या परम्परा से मनुष्यभव पाकर मोक्ष प्राप्त करेगा, अ , अर्थात पूनः कदापि नरकभव में नहीं आएगा, उस नारक के नारकपर्यायसम्बन्धी भावी कषायसमुद्घात नहीं है। जो नारक ऐसा नहीं है. अर्थात् जिसे नरकभव में दीर्घकाल तक रहना है, अथवा जो पुन: कभी नरकभव को प्राप्त करेगा, उसके भावी कषायसमुद्घात होते हैं / उनमें भी जिनकी लम्बी नरकायु व्यतीत हो चुको है, केवल थोड़ी-सी शेष है, उनके एक, दो या तीन कवायसमुद्धात होते हैं, किन्तु जिनकी प्रायु संख्यातवर्ष की या असंख्यातवर्ष की शेष है, या जो पुनः नरकभव में उत्पन्न होने वाले हैं. उनके क्रमश: संख्यात, असंख्यात या अनन्त भावी कषायसमुद्घात समझने चाहिए। एक-एक नारक के असुरकुमारपर्याय में अनन्त कषायसमुद्घात अतीत हुए हैं। जो नारक भविष्य में असुरकुमार में उत्पन्न होगा, उस नारक के असुरकुमारपर्यायसम्बन्धी भावी कषायसमुद्घात हैं और जो नहीं उत्पन्न होगा, उसके नहीं है। जिसके हैं, उसके कदाचित् संख्यात, असंख्यात या अनन्त भावी कषायसमुद्घात होते हैं। जो नारक भविष्य में जघन्य स्थिति वाला असुरकुमार होगा, उसकी अपेक्षा से संख्यात कषायसमुद्घात जानने चाहिए, क्योंकि जघन्य स्थिति में संख्यात समुद्घात ही होते हैं, इसका कारण यह है कि उसमें लोभादिकषाय का बाहुल्य पाया जाता है। असंख्यात कषायसमुद्घात उस असुर कुमार की अपेक्षा से कहे हैं, जो एक बार दीर्घकालिकरूप में अथवा कई बार जघन्य स्थिति के रूप में उत्पन्न होगा। जो नारक भविष्य में अनन्तबार असुरकुमारपर्याय में उत्पन्न होगा, उसकी अपेक्षा से अनन्त कषायसमदघात समझना चाहिए। जैसे नारक के असुर कुमारपने में भावी कषायसमुद्घात कहे हैं, वैसे ही नागकुमार से स्तनितकुमारपर्याय तक में अनन्त अतीत कषायसमुद्धात कहने चाहिए। भावी जिसके हो, उसके जघन्य संख्यात, उत्कृष्ट असंख्यात या अनन्त समझने चाहिए। नारक के पृथ्वीकायिकपर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त हैं तथा भावी कषायसमुद्घात किसी के हैं, किसी के नहीं है / पूर्ववत् एक से लगाकर हैं। अर्थात् जघन्य एक, दो या तीन हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त हैं / जो नारक नरक से निकल कर पृथ्वीकायिक होगा, उसके इस प्रकार से भावी कषाय समुद्घात होंगे। यथा -जो पचेन्द्रियतिर्यञ्चभव से, मनुष्यभव से अथवा देवभव से कषायसमुद्घात को प्राप्त होकर एक ही बार पृथ्वीकायिक भव में गमन करेगा, उसका एक, दो बार गमन करने वाले के दो, तीन बार गमन करने वाले के तीन, संख्यात बार जाने वाले के संख्यात, असंख्यात बार गमन करने वाले के असंख्यात और अनन्त बार गमन करने वाले के अनन्त भावी कपायसमुद्घात समझने चाहिए / जो नारक नरकभव से निकल कर पुनः कभी पृथ्वीकायिक का भव ग्रहण नहीं करेगा, उसके भावी कषायसमुद्घात नहीं होते। जैसे नारक के पृथ्वीकायिकरूप में कषायसमुद्घात कहे, उसी प्रकार नारक के अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रियतिर्यञ्च और मनुष्य के रूप में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त होते हैं। भावी कषायसमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org