Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 1457
________________ 262] [प्रज्ञापनासूत्र वैक्रियसमधात से समवहत जीवों की अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्घात वाले जीव अनन्तगुणा हैं, क्योंकि निगोद के अनन्तजीवों का असंख्यातवा भाग सदा विग्रहगति की अवस्था में रहता है और वे प्रायः मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत होते हैं / ___ इनसे कषायसमुद्घात समवहत जीव असंख्यातगुणा हैं, क्योंकि विग्रहगति को प्राप्त अनन्त निगोदजीवों की अपेक्षा भी असंख्यात गुणा अधिक निगोदिया जीव सदैव कषायसमद्घात से युक्त उपलब्ध होते हैं। इनसे वेदनासमुद्घात से समवहत जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि कषायसमुद्घातसमवहत उन अनन्त निगोदजीवों से वेदनासमुद्घात समवहत जीव कुछ अधिक ही होते हैं / वेदनासमुद्घात समवहत जीवों की अपेक्षा असमवहत (अर्थात् जो किसी भी समुद्घात से युक्त नहीं हों, ऐसे समुद्घात रहित) जीव असंख्यातगुणा होते हैं, क्योंकि वेदना, कषाय और मारणान्तिक समुद्घात से समवहत जीवों को अपेक्षा समुद्घातरहित अकेले निगोदजीव ही असंख्यातगुणा अधिक पाए जाते हैं।' नारकों में समुद्घातजनित अल्पबहुत्व--सबसे कम मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत नारक हैं, क्योंकि मारणान्तिकसमदघात मरण के समय ही होता है और मरने वाले नारकों की संख्या, जीवित नारकों की अपेक्षा अल्प ही होती है। मरने वालों में भी मारणान्तिकसमुद्धात वाले नारक अत्यल्प ही होते हैं, सब नहीं होते / अतः मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत जीव सबसे कम होते हैं / उनसे वैक्रियसमुद्घात से समवहत नारक असंख्यातगुणा अधिक हैं, क्योंकि रत्नप्रभा आदि सातों नरकवियों में से प्रत्येक में बहुत-से नारक परस्पर वेदना उत्पन्न करने के लिए निरन्तर उत्तरवैक्रिय करते रहते हैं। वैक्रियसमुदघात समवहत नारकों की अपेक्षा कषायसमुदघात वाले नारक असंख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि वे परस्पर क्रोधादि से सदैव ग्रस्त रहते हैं। कषायसमुद्धात से समवहत नारकों को अपेक्षा वेदनासमुद्घात से समवहत मारक संख्यातगुणा अधिक होते हैं, क्योंकि यथासम्भव क्षेत्रजन्य वेदना, परमाधामिकों द्वारा उत्पन्न की हुई और परस्पर उत्पन्न की हुई वेदना के कारण प्राय : बहुत-से नारक सदा वेदनासमुद्घात से समवहत रहते हैं। इनकी अपेक्षा भी असमवहत नारक संख्यातगुणा अधिक हैं, क्योंकि बहुत-से नारक वेदनासमुद्घात के बिना भी वेदना का वेदन करते रहते हैं / इस अपेक्षा से असमवहत नारक सर्वाधिक हैं / असुरकुमारादि भवनपतियों में समुद्घात की अपेक्षा अल्पबहुत्व-सबसे कम तैजससमुद्घात वाले हैं, क्योंकि अत्यन्त तीव्र क्रोध उत्पन्न होने पर ही कदाचित् कोई असुरकुमार तैजससमुद्घात करते हैं। उनकी अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्घात वाले असुरकुमारादि असंख्यातगुणा अधिक हैं, क्योंकि मारणान्तिकसमुद्घात मरणकाल में होता है / उनको अपेक्षा वेदनासमुद्घातसमवहत असुरकुमारादि असंख्यातगुणा हैं, क्योंकि पारस्परिक संग्राम आदि किसी न किसी कारण से बहुत-से असुरकुमार वेदनासमधात करते हैं। उनकी अपेक्षा कषायसमुद्धात और वैक्रियसमुद्घात से समवहत असुर 1. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. 5, पृ. 1014 से 1016 तक (ख) प्रज्ञापना मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. 7, पृ. 446 2. (क) वही, मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. 7, पृ. 446 (ख) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. 5, पृ. 1017 से 1019 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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