________________ 296] [प्रज्ञापनासून अन्तिम मंगलाचरण-शिष्टाचारपरम्परानुसार ग्रन्थ के प्रारम्भ, मध्य और अन्त में मंगला. चरण करना चाहिए। अतएव यहाँ ग्रन्थ की समाप्ति पर परम मंगलमय सिद्ध भगवान् का स्वरूप बताया गया है, तथा शिष्य-प्रशिष्यादि की शिक्षा के लिए भी कहा गया है 'णिच्छिण्ण-सव्वदुक्खा....."सुही सुहं पत्ता।" // प्रज्ञापना भगवती का छत्तीसवां समुद्घातपद समाप्त / / // प्रज्ञापनासूत्र समाप्त / 1. प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा.५,१.११५९-६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org