________________ अभिमत 'व्याख्या-प्रज्ञप्ति' जैनों का भगवतीसूत्र है। यह अद्धमागधी प्राकृत में निबद्ध आगमों में पांचवां तथा विशालकाय विशिष्ट रचना है / जैनदर्शन के आधारभूत सिद्धान्त स्याद्वाद का बीज सर्वप्रथम इसी में मिलता है। इसके अलावा यह जैन इतिहास, संस्कृति एवं विविध विद्यायों, कलाओं तथा अन्यान्य विषयों का अद्भुत विश्वकोश है। मुद्रण एवं छपाई के आकर्षक होने के साथ ही साथ सुवाच्य अनुवाद, अत्युत्तम विषय प्रतिपादन शैली एवं अत्यन्त उपयोगी पाद-टिप्पणों का मनोरम त्रिवेणी संगम भजनीय है। वाणीभूषण मुनिश्री अमरजी महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं। उनकी सम्पादनक्षमता एवं उच्चकोटि को विद्वत्ता सराहनीय है। निस्संदेह उनका यह सफल प्रयास प्राध्यात्मिक विकास एवं सांस्कृतिक चेतना के क्षेत्र में शोधमुमुक्षुओं को अधिक लाभान्वित करेगा। इस सुश्रुत सेवा के आदि प्रेरणा स्रोत एवं प्रधान सम्पादक युवाचार्य, बहुश्रुत मुनिश्री मधुकरजी महाराज तथा प्रकाशन संस्था को शतशः साधुवाद / —डॉ. धर्मचन्द जैन, एम. ए. (संस्कृत, पाली), पी. एच. डी. आचार्य (संस्कृत, जैनदर्शन) कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र Jain Education international For Private & Personal use only www.jainelibrary.org