________________ 270] [प्रज्ञापनासूत्र पृथ्वीकायिकों में अल्पबहुत्व-मान, क्रोध, माया और लोभ समुद्घात उत्तरोत्तर अधिक हैं / असमवहत पृथ्वीकायिक संख्यातगुणे अधिक हैं / पृथ्वीकायिकों के समान अन्य एकलेन्द्रिय तथा विकलेन्द्रिय एवं पंचेन्द्रियतिर्यञ्च की भी वक्तव्यता समझ लेनी चाहिए। मनुष्यों में कषायसमुद्घात समवहत संबंधी अल्पबहुत्व-समुच्चयजीवों के समान समझना चाहिए / परन्तु एक बात विशेष है, वह यह कि अकषायसमुद्घात से समवहत मनुष्यों की अपेक्षा मानसमुद्घात से समवहत मनुष्य असंख्यातगुणा हैं / क्योंकि मनुष्यों में मान की प्रचुरता पाई जाती चौवीस दण्डकों में छाद्मस्थिकसमुद्घात प्ररूपणा 2147. कति णं भंते ! छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णता? गोयमा ! छाउमत्थिया छ समुग्घाया पण्णत्ता / तं जहा-वेदणासमुग्घाए 1 कसायसमग्घाए 2 मारणंतियसमुग्धाए 3 वेउब्बियसमुग्घाए 4 तेयगसमुग्घाए 5 पाहारगसमुग्धाए 6 / [2147 प्र] भगवन् ! छाद्मस्थिकसमुद्घात कितने कहे गए हैं ? [2147 उ.] गौतम ! छादमस्थिकसमद्घात छह कहे गए हैं / वे इस प्रकार हैं-(१) वेदनासमुद्घात, (2) कषायसमुद्घात, (3) मारणान्तिकसमुद्घात, (4) वैक्रियसमुद्घात, (5) तैजससमुद्धात और (6) आहारकसमुद्घात / 2148. गैरइयाणं भंते ! कति छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णता ? गोयमा ! चत्तारि छाउमत्थिया समुग्धाया पण्णत्ता। तं जहा–वेदणासमुग्घाए 1 कसायसमुग्धाए 2 मारणंतियसमुग्घाए 3 वेउव्वियसमुग्घाए 4 / [2148 प्र. भगवन् ! नारकों में कितने छाद्मस्थिकसमुद्घात कहे हैं ? [2184 उ.] गौतम ! नारकों में चार छाद्मस्थिकसमुद्धात कहे गए हैं / यथा-(१) वेदनासमुद्घात, (2) कषायसमुद्घात, (3) मारणान्तिकसमुद्घात और (4) वैक्रियसमुद्धात / 2146. असुरकुमाराणं पुच्छा। गोयमा ! पंच छाउमत्थिया समुग्घाया पण्णत्ता / तं जहा-वेदणासमुग्घाए 1 कसायसमुग्धाए 2 मारणंतियसमुग्धाए 3 वेउब्वियसमुग्घाए 4 तेयगसमुग्घाए 5 / [2146 प्र.] असुरकुमारों में छाद्मस्थिकसमुद्धातों की पूर्ववत् पृच्छा ? [2146 उ.] गौतम ! असुरकुमारों में पांच छाद्मस्थिकसमुद्घात कहे हैं / यथा-(१) वेदनासमुद्घात, (2) कषायसमुद्घात, (3) मारणान्तिकसमुद्घात, (4) वैक्रियसमुद्घात और (5) तैजससमुद्धात / 1. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. 5, पृ. 1054 तक (ख) प्रज्ञापना. मलयवत्ति, अभि. रा. कोष भा. 7 प. 452 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org