________________ छत्तीसवां समुधातपद] [269 प्रकार का जो नारक है, उसके भावी कषायसमुद्घात जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात और अनन्त होते हैं। संख्यातकाल तक संसार में रहने वाले के संख्यात, असंख्यातकाल तक रहने वाले के असंख्यात और अनन्तकाल तक संसार में रहने वाले के अनन्त भावी कषायसमदघात होते हैं। बहत्व की अपेक्षा से नरायको से लेकर वैमानिको तक के अतीत और अनागत क्रोधा मदघात अनन्त हैं। अनागत अनन्त इसलिए है कि पुच्छा के समय बहत-से नारकादि ऐसे होते हैं, जो अनन्तकाल तक संसार में रहेंगे। इस प्रकार एकवचन और बहुवचन से सम्बन्धित चौवीस दण्डकों के प्रत्येक के चार-चार आलापक होते हैं। यों कुल मिला कर 244 4 =66 आलापक होते हैं। इसके पश्चात् चौवीस दण्डकों संबंधी नैरयिक आदि स्वपरपर्यायों में एकत्व और बहुत्व की अपेक्षा से अतीत अनागत क्रोधादि कषायसमुद्घात की प्ररूपणा की गई है / / विशेष--अत्यन्त तीव्र पीड़ा में निरन्तर उद्विग्न रहने वाले नारकों में प्रायः लोभसमुद्घात होता नहीं है / होते हैं तो भी वे अल्प होते हैं। इसके पश्चात् क्रोध, मान, माया और लोभसमुद्घात से समवहत और असमवहत समुच्चय जीव एवं चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के अल्पबहुत्व की चर्चा की गई है। अल्पबहुत्व की चर्चा और स्पष्टीकरण-(१) समुच्चयजीव--सबसे कम अकषायसमुद्घात से समवहत जीव हैं। अकषायसमुद्घात का अर्थ है-कषायसमुद्घात से भिन्न या रहित छह समुद्घातों में से किसी भी एक समुद्घात से समवहत / अकषायसमुद्घात से समवहत जीव कदाचित् कोई-कोई ही पाए जाते हैं / वे यदि उत्कृष्ट संख्या में हों तो भी कषायसमुद्घात से समवहत जीवों के अनन्तवें भाग ही होते हैं। उनकी अपेक्षा मानसमुद्घात से समवहत जीव अनन्तगुणा अधिक हैं। क्योंकि अनन्त वनस्पतिकायिक जीव पूर्वभव के संस्कारों के कारण मानसमुद्घात में वर्तमान रहते हैं। उनकी अपेक्षा क्रोधसमुद्घात से समवहत जीव विशेषाधिक हैं; क्योंकि मानी जीवों की अपेक्षा क्रोधी जीव विशेषाधिक होते हैं / उनसे मायासमुद्घात-समवहत जीव विशेषाधिक होते हैं / उनसे भी लोभसमुद्घात-समवहत जीव विशेषाधिक होते हैं, क्योंकि मायी जीवों की अपेक्षा लोभी जीव बहुत अधिक होते हैं। उनसे भी असमवहत जीव संख्यातगुणा हैं। क्योंकि चारों गतियों में समद्घातयुक्त जीवों की अपेक्षा समुद्घातरहित जीव संख्यातगुणा अधिक पाये जाते हैं। सिद्ध जीव एकेन्द्रियों के अनन्तवें भाग हैं, किन्तु यहाँ उनकी विवक्षा नहीं की गई है / (2) नारकों में कषायसमुद्घातों का अल्पबहुत्व-नारकों में लोभसमुद्घात सबसे कम है, क्योंकि नारकों को प्रिय वस्तुओं का संयोग नहीं मिलता। अतः उनमें लोभसमुद्घात होता भी है तो भी अन्य क्रोधादि समुद्घातों से बहुत ही कम होता है। उनकी अपेक्षा मायासमुद्घात, मानसमुद्घात, क्रोधसमुद्घात क्रमशः उत्तरोत्तर संख्यातगुणा अधिक हैं / असमवहत नारक इन सबसे संख्यातगुणा हैं / (3) असुरकुमारादि में कषायसमुद्घातों का अल्पबहुत्व-देवों में स्वभावतः लोभ की प्रचुरता होती है। उससे मानकषाय, क्रोधकषाय एवं मायाकषाय की उत्तरोत्तर अल्पता होती है / इसलिए असुरकुमारादि भवनपति देवों में सबसे कम क्रोध समुद्घाती, उससे उत्तरोत्तर मान, माया और लोभ से समवहत अधिक बताए हैं और सबसे अधिक संख्यातगुणे अधिक असमवहत असुरकुमार हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org