________________ छत्तीसवाँ समुद्यातपद] (261 गोयमा ! सव्वत्थोवा मणूसा पाहारगसमुग्घाएणं समोहया, केवलिसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, तेयगसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, वेउम्वियसमुग्घाएणं समोहया संखेज्जगुणा, मारणंतियसमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, वेयणासमुग्घाएणं समोहया असंखेज्जगुणा, कसायसमुग्धाएणं समोहया संखेज्जगुणा, असमोहया असंखेज्जगुणा। [2131 प्र. भगवन् ! वेदनासमुद्घात से, कषायसमुद्घात से, मारणान्तिकसमुद्घात से, वैक्रियसमुद्धात से, तैजससमुद्घात से, पाहारकसमुद्घात से तथा केवलिसमुद्घात से समवहत एवं असमवहत मनुष्यों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? / [2131 उ.] गौतम ! सबसे कम आहारकसमुद्घात से समवहत मनुष्य हैं। उनसे केवलिसमुद्घात से समवहत मनुष्य संख्यातगुणा हैं, उनसे तैजससमुद्घात से समवहत मनुष्य संख्यातगुणा हैं, उनसे वैक्रियसमुद्घात से समवहत मनुष्य संख्यातगुणा हैं, उनसे मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत मनुष्य असंख्यातगुणा हैं, उनसे वेदनासमुद्घात से समवहत मनुष्य असंख्यातगुणा हैं तथा उनसे कषायसमुद्घात से समवहत मनुष्य संख्यातगुणा हैं और इन सबसे असमवहत मनुष्य असंख्यातगुणा हैं / 2132. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा। [2132] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के (समुद्धात विषयक अल्पबहुत्व की वक्तव्यता) असुरकुमारों के समान (समझनी चाहिए / ) विवेचन-समवहत जीवों की न्यूनाधिकता का कारण-ग्राहारकसमद्घात किये हुए जीव सबसे कम इसलिए हैं कि लोक में आहारकशरीरधारकों का विरहकाल छह मास का बताया गया है / अतएव वे किसी समय नहीं भी होते हैं / जब होते हैं, तब भी जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व (दो हजार से नौ हजार तक) ही होते हैं। फिर ग्राहारकसमुद्घात पाहारक शरीर के प्रारम्भकाल में ही होता है, अन्य समय में नहीं, इस कारण पाहारकसमुद्घात से समवहत जीव भी थोड़े ही कहे गए हैं। आहारकस मुद्घातवालों की अपेक्षा केवलि समुद्घात से समवहत जीव संख्यातगुणा अधिक हैं, क्योंकि वे एक साथ शतपृथक्त्व की संख्या में उपलब्ध होते हैं। उनकी अपेक्षा तैजससमुद्घातयुक्त जीव असंख्यातगुणा होते हैं, क्योंकि पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों, मनुष्यों और चारों जाति के देवों में तैजससमुद्घात पाया जाता है। उनकी अपेक्षा वैक्रियसमुद्धात समवहत जीव असंख्यातगुणा होते हैं, क्योंकि वैक्रियसमुद्घात नारकों, वायुकायिकों, तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों, मनुष्यों और देवों में भी पाया जाता है। वैक्रियलब्धि से युक्त वायुकायिकजीव देवों से भी असंख्यातगुणा हैं और बादरपर्याप्त वायूकायिक स्थलचर पंचेन्द्रियों की अपेक्षा भी असंख्यातगुणा हैं, स्थलचरपंचेन्द्रिय देवों से भी असंख्यात गुणा हैं / इस कारण तेजससमुद्घात समवहत जीवों की अपेक्षा वैक्रियसमुद्घात से समवहत जीव असंख्यातगुणे अधिक समझने चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org