________________ छत्तीसवाँ समुद्घातपद [265 [2] एवं जाव वेमाणियाणं / [2134-2] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) यावत् वैमानिकों तक (प्रत्येक दण्डक में चार-चार कषायसमुद्धात कहे गये हैं / ) 2135. [1] एगमेगस्स णं भंते ! हेरइयस्स केवइया कोहसमुग्धाया अतीता? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि। जस्सऽस्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता था। [2135-1 प्र.] भगवन् ! एक-एक नारक के कितने क्रोधसमुद्घात प्रतीत हुए हैं ? {2135-1 उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। [प्र.] भगवन् ! (उसके) भावी (क्रोधसमुद्घात) कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! (भावी क्रोधसमुद्घात) किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं / [2] एवं जाव वेमाणियस्स / [2135-2] इसी प्रकार (एक-एक असुरकुमार से लेकर) यावत् (एक-एक) वैमानिक तक (समझना चाहिए।) 2136. एवं जाव लोभसमुग्घाए / एते चत्तारि दंडगा। [2136] इसी प्रकार (क्रोधसमुद्धात के समान) यावत् लोभसमुद्घात तक (नारक से लेकर वैमानिक तक प्रत्येक के अतीत और अनागत का कथन करना चाहिए / ) इस प्रकार ये चार दण्डक हुए। 2137. [1] रइयाणं भंते ! केवतिया कोहसमुग्घाया प्रतीया ? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता। [2137-1 प्र.] भगवन् ! (बहुत) नैरयिकों के कितने क्रोधसमुद्घात अतीत हुए हैं ? [2137-1 उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। [प्र. भगवन् ! उनके भावी क्रोधसमद्घात कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! वे भी अनन्त होते हैं। [2] एवं जाव वेमाणियाणं / [2137-2] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक की वक्तव्यता जाननी चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org