________________ छत्तीसवां समुद्घातपद] [263 कुमारादि क्रमशः उत्तरोत्तर संख्यातगुणा अधिक होते हैं। उनसे भी असमवहत असुरकुमारादि असंख्यातगुणा हैं / असुरकुमारों के समान ही नागकुमार आदि स्तनितकुमार पर्यन्त भवनपति देवों का कथन समझना चाहिए।' पृथ्वीकायिकादि चार एकेन्द्रियों का समुद्घात की अपेक्षा अल्पबहुत्व—सबसे कम मारणान्तिकसमुद्घात-समवहत पृथ्वीकायादि (वायुकाय को छोड़कर) चार हैं, क्योंकि यह समुद्घात मरण के समय ही होता है और वह भी किसी को होता है किसी को नहीं। उनकी अपेक्षा कषायसमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक पूर्वोक्त युक्तिवश पूर्ववत् ही समझ लेना चाहिए / उनकी अपेक्षा वेदनासमुद्घात से समवहत पृथ्वीकायिक विशेषाधिक हैं और उनकी अपेक्षा असमवहत पृथ्वीकायिकादि असंख्यातगुणा अधिक हैं। वायुकायिकों में समवघात की अपेक्षा अल्पबहत्व- सबसे कम वैक्रियसमदघात से समवहत वायुकायिक हैं। क्योंकि वैक्रियलब्धि वाले वायुकायिक अत्यल्प ही होते हैं / उनसे मारणान्तिकसमुद्घात-समवहत वायुकायिक असंख्यात गुणा हैं, क्योंकि मारणान्तिकसमुद्घात पर्याप्त, अपर्याप्त, बादर एवं सूक्ष्म सभी वायुकायिकों में हो सकता है। उनकी अपेक्षा कषायसमुद्घात से समवहत वायुकायिक असंख्यातगुणा होते हैं, उनसे वेदनासमुद्घात-समवहत वायुकायिक विशेषाधिक होते हैं, इन सबसे असमवहत वायुकायिक असंख्यात गुणा अधिक होते हैं, क्योंकि सकलसमुद्धातों वाले वायुकायिकों की अपेक्षा स्वभावस्थ वायुकायिक स्वभावतः असंख्यातगुणा पाये जाते हैं। . द्वीन्द्रियादि विकलेन्द्रियों में सामुद्घातिक अल्पबहुत्व- सबसे कम मारणान्तिकसमुद्घातसमवहत द्वीन्द्रिय हैं, क्योंकि पृच्छासमय में प्रतिनियत द्वीन्द्रिय ही मारणान्तिकसमद्घात-समवहत पाए जाते हैं। उनसे वेदनासमुद्घात-समवहत द्वीन्द्रिय असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि सर्दी-गर्मी आदि के सम्पर्क से अत्यधिक द्वीन्द्रियों में वेदनासमुद्घात होता है। उनकी अपेक्षा कषायसमुद्घात से समवहत द्वीन्द्रिय संख्यातगुणे हैं, क्योंकि अत्यधिक द्वीन्द्रिय में लोभादिकषाय के कारण कषायसमुद्घात होता है। इन सबसे भी असमवहत द्वीन्द्रिय पूर्वोक्तयुक्ति से संख्यातगुणा हैं / द्वीन्द्रिय के समान त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय समवहत-असमवहत का अल्पबहुत्व समझ लेना चाहिए। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों में सामघातिक अल्पबहत्व—सबसे कम तैजससमद्घात से समवहत पंचेन्द्रियतिर्यञ्च हैं, क्योंकि तेजोलब्धि बहुत थोड़ों में होती है। उनकी अपेक्षा वैक्रियसमुद्घात. समवहत पंचेन्द्रियतिर्यञ्च असंख्यातगुणा हैं, क्योंकि वैक्रियलब्धि अपेक्षाकृत बहुतों में होती है। उनसे मारणान्तिकसमुद्घात-समवहत असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि वैक्रियलब्धि से रहित सम्मूच्छिम जलचर, स्थलचर और खेचर, प्रत्येक में पूर्वोक्त वैक्रियसमुद्घातिकों की अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्घात 1. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अ. रा कोष. भा. 7, पृ. 446 2. (क) वही, मलयवृत्ति प्र. रा. कोष, भा. 7, पृ. 446 (ख) प्रज्ञापना, (प्रमेयबोधिनी टीका), भा. 5, पृ. 1921 से 1923 तक 3. (क) वही, भा. 5, पृ. 1923-1924 / / . (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. 7, पृ. 447 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org