________________ छत्तीसवाँ समुद्घातपद] प्रकार केवलिसमुद्घात सम्बन्धी चौवीस दण्डकों में से प्रत्येक में चौवोस दण्डक घटित किए गए हैं / ये सब विधिनिषेध के कुल आलापक 1056 हैं / ' चौवीस दण्डकों को चौवीस दण्डक-पर्यायों में बहुत्व की अपेक्षा से अतीतादि समुद्घात-प्ररूपणा 2121. [1] रइयाणं भंते ! रइयत्ते केवतिया वेदणासमुग्घाया प्रतीया? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! अणंता / एवं जाव वेमाणियत्ते। [2121-1 प्र.] भगवन् ! (बहुत-से) नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने वेदनासमुद्घात प्रतीत हुए हैं ? [2121-1 उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं / [प्र] भगवन् ! (नारकों के) भावी (वेदनासमुद्घात) कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! अनन्त होते हैं। इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्याय तक में (भी अतीत और अनागत अनन्त होते हैं / ) [2] एवं सव्वजीवाणं भाणियध्वं जाव वेमाणियाणं वेमाणियत्ते। [2121-2] इसी प्रकार सर्व जीवों के (अतीत और अनागत वेदनासमुद्घात) यावत् वैमानिकों के वैमानिकपर्याय तक में (कहने चाहिए / ) 2122. एवं जाव तेयगसमुग्घायो / णवरं उवउज्जिऊण यन्वं जस्सऽस्थि वेउब्विय-तेयगा। [2122] इसी प्रकार यावत् तेजससमुद्घात पर्यन्त कहना चाहिए। विशेष उपयोग लगा कर समझ लेना चाहिए कि जिसके वैक्रिय और तैजससमुद्घात सम्भव हों, (उसी के कहना चाहिए।) 2123. [1] णेरइयाणं भंते ! गेरइयत्ते केवतिया आहारगसमुग्धाता अतीया ? गोयमा ! णस्थि / केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! नस्थि / [2123-1 प्र.] भगवन् ! (बहुत) नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने आहारकसमुद्घात अतीत हुए हैं ? | [2123-1 उ.] गौतम ! एक भी नहीं हुआ है / [प्र.] भगवन् ! (नारकों के) भावी (आहारकसमुद्घात) कितने होते हैं ? [उ ] गौतम ! नहीं होते। [2] एवं जाव वेमाणियत्ते / णवरं मणूसत्ते प्रतीया असंखेज्जा, पुरेक्खडा असंखेज्जा। [2123-2] इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्याय में (अतीत अनागत प्राहारकसमुद्घात का कथन करना चाहिए / ) विशेष यह है कि मनुष्यपर्याय में असंख्यात अतीत और असंख्यात भावी (आहारकसमुद्घात होते हैं / ) 1. अ. रा. कोष. भाग 7, पृ. 443 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org