Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ छत्तीसवाँ समुद्घातपद] [255 . [प्र.] भगवन् ! (मनुष्यों के) भावी (केवलिसमुद्घात) कितने होते हैं ? उ.] गौतम ! वे कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होते हैं। _ [4] एवं एते चउन्बोसं चउव्वीसा दंडगा सम्वे पुच्छाए भाणियव्वा जाध वेमाणियाणं वेमाणियत्ते। [2124-4] इस प्रकार इन चौवीस दण्डकों में चौवीस दण्डक घटित करके पृच्छा के अनुसार यावत् वैमानिकों के वैमानिकपर्याय में, यहाँ तक कहने चाहिए / विवेचन--बहुत्व की अपेक्षा से अतोत-अनागत वेदनादिसमुद्घात निरूपण--इससे पूर्व एकएक नैरयिक प्रादि के नैरथिकादिपर्याय में अतीत-अनागत वेदनादि समुद्घातों का निरूपण किया गया था। अब बहुत्व की अपेक्षा से नारकादि के उस-उस पर्याय में रहते हुए अतीत-अनागत वेदनादि समुद्घातों का निरूपण किया गया है। (1) वेदनादि पांच समदघात-नारकों के नारकपर्याय में रहते हए अतीत वेदनासमृदयात अनन्त हुए हैं, क्योंकि अनेक नारकों को अव्यवहारराशि से निकले अनन्तकाल व्यतीत हो चुका है। इसी प्रकार उनके भावी वेदनासमुद्घात भी अनन्त हैं, क्योंकि वर्तमानकाल में जो नारक हैं, उनमें से बहुत-से नारक अनन्तबार पुनः नरक में उत्पन्न होंगे। नारकों के नारकपर्याय में वेदनासमुद्घात कहे हैं, वैसे ही असुरकुमारादि भवनपतिपर्याय में, पृथ्वीकायिकादि एकेन्द्रियपर्याय में, विकलेन्द्रियपर्याय में, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चपर्याय में, मनुष्यपर्याय में, वाणव्यन्तरपर्याय में, ज्योतिष्कपर्याय में और वैमानिकपर्याय में, अर्थात् इन सभी पर्यायों में रहते हुए नारकों के अतीत और अनागत वेदनासमुद्घात अनन्त हैं। नारकों के समान नारकपर्याय से वैमानिकपर्याय तक में रहे हुए असुरकुमारादि भवनपतियों से लेकर वैमानिकों तक के अतीत-अनागत वेदनासमुद्घात का कथन करना चाहिए। अर्थात् नारकों के समान ही वैमानिकों तक सभी जीवों के स्वस्थान और पर स्थान में (चौवीस दण्डकों में) अतीत और अनागत वेदनासमुद्धात कहने चाहिए / इस प्रकार बहुवचन सम्बन्धी वेदनासमुद्घात के आलापक भी कुल मिलाकर 1056 होते हैं। वेदनासमुद्घात के समान अतीत और अनागत कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय और तेजससमुद्घात भी नारकों से लेकर वैमानिकों तक तथा नारकपर्याय से लेकर वैमानिकपर्याय तक चौवीस दण्डकों में कहना चाहिए। इस प्रकार कषायसमुद्धात आदि के भी प्रत्येक के 1056 पालापक होते हैं। विशेष सूचना-उपयोग लगाकर अर्थात् ध्यान रखकर जो समुद्घात जिसमें (जहाँ) सम्भव है, उसमें (वहाँ) वे ही प्रतीत अनागत समुद्घात कहने चाहिए / इसका अर्थ यह हुआ कि जहाँ जिसमें जो समुद्घात सम्भव न हों, वहाँ उसमें वे समुद्वात नहीं कहने चाहिए / इसी का स्पष्टीकरण करते हुए कहा गया है-उवउज्जिऊण यन्वं, जस्सऽस्थि वेउन्विय-तेयगा- अर्थात् जिन नारकादि में वैक्रिय और तैजस समुद्घात सम्भव हैं, उन्हीं में उनका कथन करना चाहिए। उनके अतिरिक्त पृथ्वीकायिकादि में नहीं कहना चाहिए, क्योंकि उनमें वे सम्भव नहीं हैं / अतीत और अनागत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org