Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ छत्तीसवाँ समुद्घातपव] [257 इस प्रकार यहाँ चौवीसों दण्डकों में से प्रत्येक को चौवीस ही दण्डकों पर घटित करना चाहिए / सब मिल कर 1056 पालापक होते हैं।' केवलिसमुद्घात-नारकों के नारकपर्याय में अतीत और भावी केवलिसमुद्वात नहीं होता, क्योंकि केवलिसमुद्घात केवल मनुष्यावस्था में ही हो सकता है। मनुष्य के अतिरिक्त अन्य अवस्था में वह सम्भव ही नहीं है। जो जीव केवलिसमुद्घात कर चुका हो, वह संसार-परिभ्रमण नहीं करता, क्योंकि केवलिसमुद्घात के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त में ही नियम से मोक्ष प्राप्त हो जाता है / अतएव नारकों के मनुष्य से भिन्न अवस्था में अतीत और अनागत केवलिसमुद्घात ही नहीं है। इसी प्रकार असुरकुमारादि से लेकर (मनुष्यपर्याय के सिवाय) वैमानिक अवस्था में भी अतीत केवलिसमुद्धात नहीं हो सकता / अभिप्राय यह है कि जो मनुष्य केवलिस मुद्घात कर चुके हों, उनका नरक में नहा होता / अतः मनुष्यावस्था में भी अतीत केवलिसमदघात सम्भव नहीं है / पच्छा के समय में जो नारक विद्यमान हों, उनमें से असंख्यात ऐसे हैं, जो मोक्षगमन के योग्य हैं। इस दृष्टि से भावी केवलिसमुद्घात असंख्यात कहे गए हैं। इसी प्रकार असुर कुमार आदि भवनपतियों के पृथ्वीकायिक आदि चार एकेन्द्रियों (वनस्पतियों के सिवाय), तीन विकलेन्द्रियों, पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों, वाणव्यन्तरों, ज्योतिष्कों ओर वैमानिकों के भी मनुष्येतरपर्याय में अतीत अथवा अनागत केवलिसमुद्घात के अनसार नहीं हो सकते / वनस्पतिकायिकों के मनष्यावस्था में अतीत केवलिसमदघात तो नहीं होते, क्योंकि केवलिसमुदघात के पश्चात उसी भव में मुक्ति प्राप्त हो जाती है, फिर वनस्पतिकायिकों में जन्म लेना संभव नहीं है, किन्तु भावी केवलिसमुद्घात अनन्त हैं। इसका कारण यह है कि पृच्छा के समय जो वनस्पतिकायिक जीव हैं, उनमें अनन्त जीव ऐसे भी हैं, जो वनस्पतिकाय से निकल कर अनन्तरभव में या परम्परा से केवलिसमधात करके सिद्धि प्राप्त करगे। मनुष्यों के मनुष्यावस्था में अतीत केवलिसमुद्धात कदाचित होता है, कदाचित नहीं होता। जब कई मनुष्य केवलिसमुद्घात कर चुके हों और मुक्त हो चुके हों और अन्य किसी केवली ने केवलिसमुदघात न किया हो, तब केवलिसमुद्घात का अभाव समझना चाहिए। जब मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में केवलिसमुद्घात होते हैं और उत्कृष्ट शत-पृथक्त्व (दो सौ से नौ से तक) होते हैं / मनुष्यों के मनुष्यपर्याय में रहते हुए भावी केवलिस मुद्घात कदाचित संख्यात और कदाचित असंख्यात होते हैं। पृच्छा के समय में कदाचित संख्यात मनुष्य ऐसे हो सकते हैं, जो भविष्य में मनुष्यावस्था में केवलिसमुद्घात करेंगे, कदाचित असंख्यात भी हो सकते हैं / इस प्रकार के चौवीस-चौवीस दण्डक हैं, जिनमें अतीत और अनागत केवलिस मुद्धातों का प्रतिपादन किया गया है। ये सब मिलकर 1056 आलापक होते हैं। ये पालापक नैरयिकपर्याय से लेकर वैमानिकपर्याय तक स्व-परस्थानों में कहने चाहिए। 1. (क) प्रज्ञापना. मलय वृत्ति, अभि. रा. कोष भा. 7, प. 444 (ख) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भा. 5. पृ. 995 2. (क) बही, भा. 5.1 999 से 1001 (ख) प्रज्ञापना. मलय वत्ति, अभि. रा. कोष, भा. 7, पृ. 444 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org