Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ छत्तीसवां समुद्घातपद] [247 [2120-3] मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत केवलिसमुद्घात किसी के होता है, किसी के नहीं होता / जिसके होता है, उसके एक होता है। इसी प्रकार भावी (केवलिसमुद्घात के विषय में भी कहना चाहिए।) [4] एक्मेते चउवीसं चउवीसा दंडगा। [2120-4] इस प्रकार ये चौवीसों दण्डक चौबीसों दण्डकों में (जानना चाहिए।) विवेचन—एक-एक जीव के नारकत्वादि पर्याय में अतीत-अनागत-समुद्घात-प्ररूपणा–पहले यह प्रश्न किया गया था कि नारक के अतीत समुद्घात कितने हैं ?, यहाँ यह प्रश्न किया जा रहा है कि नारक ने नारक-अवस्था में रहते हुए कितने वेदनासमुद्घात किए ? अर्थात्--पहले नारकजीव के द्वारा चौवीस दण्डकों में से किसी भी दण्डक में किये हुए वेदनासमुद्घातों की गणना विवक्षित थी, जबकि यहाँ पर केवल नारकपर्याय में किये हुए वेदनासमुद्घातों की गणना विवक्षित है / वर्तमान में जो नारकजीव है, उसने नारकेतरपर्यायों में जो बेदनासमुद्घात किये, वे यहाँ विवक्षित नहीं। इसी प्रकार परस्थानों में भी एक-एक पर्याय ही विवक्षित है। यथा-नारक ने असुरकुमार-अवस्था में जो वेदनासमुद्घात किये, उन्हीं की गणना की जाएगी, अन्य अवस्थाओं में किये हुए वेदनासमुद्धात विवक्षित नहीं होंगे। इस प्रकरण में सर्वत्र यह विशेषता ध्यान में रखनी चाहिए। (1) वेदनासमुद्घात–नारकपर्याय में रहे हुए एक नारक के अनन्त वेदनासमुद्घात हुए हैं, क्योंकि उसने अनन्त वार नारकपर्याय प्राप्त की है और एक-एक नारकभव में भी कम से कम संख्यात वेदनासमुद्घात होते हैं। साथ ही किसी एक नारक के मोक्षपर्यन्त समग्र अनागतकाल की अपेक्षा से भावी वेदनासमदघात होते हैं, किसी के नहीं होते। जिस नारक की मृत्यू निकट है वह कदाचित् वेदनासमुद्घात किये बिना ही, मारणान्तिकसमुद्घात के द्वारा नरक से उद्वर्तन करके मनुष्यभव पाकर मुक्त हो जाता है, उस नारक को नारकपर्यायसम्बन्धी भावी वेदनासमुद्धात नहीं होता / जिस नारक के नारकपर्यायसम्बन्धी भावी समुदघात हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं। जैसे नारकों के नरकपर्यायसम्बन्धी वेदनासमुद्घातों का निरूपण किया गया, उसी प्रकार नारक के असुरकुमारपर्याय में यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त भवनपतिदेवपर्याय में, पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रियपर्याय में, विकलेन्द्रियपर्याय में, पंचेन्द्रियपर्याय में, मनुष्यपर्याय में, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकपर्याय में भी सम्पूर्ण अतीतकाल की अपेक्षा अनन्त वेदनासमरात प्रतीत होते हैं। भावी वेदनासमदरात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं / इनमें से जिनकी शेष आयु क्षीण हो गई है और जो उसी भव में मोक्ष जाने वाले हैं, उनकी अपेक्षा से एक, दो या तीन भावी वेदनासमुद्घात कहे गए हैं। जो जीव पुनः नरक में उत्पन्न होने वाला होता है, उसके जधन्यरूप से भी संख्यात भावी वेदनासमुद्घात होते हैं / ये संख्यात समुद्घात भी उसी नारक के समझने चाहिए, जो एक ही वार और वह भी जघन्य स्थिति वाले नरक में उत्पन्न होने वाला हो / जो अनेक बार और दीर्घस्थितिकरूप में उत्पन्न होने वाला हो, उसके भावी वेदनासमुद्घात असंख्यात होते हैं, जो अनन्तबार उत्पन्न होने वाला हो उसके अनन्त होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org