________________ 246] [प्रज्ञापनासूत्र अतीत (आहारकसमुद्घात) किसी के होता है, किसी के नहीं होता। जिसके होता है, उसके जघन्य एक अथवा दो और उत्कृष्ट तीन होते हैं। [प्र. भगवन् ! (नारक के मनुष्यपर्याय में) भावो (पाहारकसमुद्धात) कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते / जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार होते हैं। [3] एवं सव्वजीवाणं मणूसेसु भाणियव्वं / [2116-3] इसी प्रकार समस्त जीवों और मनुष्यों के (अतीत और भावी आहारकसमद्घात के विषय में जानना चाहिए / ) [4] मणूसस्स मणूसत्ते अतीया कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि / जस्सऽस्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि / एवं पुरेक्खडा वि। 2116-4] मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत पाहारकसमद्घात किसी के हुए हैं, किसी के नहीं हुए। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार होते हैं। इसी प्रकार भावी (पाहारकसमुद्घात) जानने चाहिए। [5] एवमेते वि चउवीसं चउबीसा दंडगा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते। [2116-5] इस प्रकार ये चौवीस दण्डक चौवीसों दण्डकों में यावत् वैमानिकपर्याय में (आहारकसमुद्घात तक) कहना चाहिए / 2120. [1] एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स रइयत्ते केवतिया केवलिसमुग्धाया अतीया ? गोयमा! पत्थि। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! पत्थि। 42120-1 प्र.] भगवन् ! एक-एक नरयिक के नारकत्वपर्याय में कितने केवलिसमुद्घात प्रतीत हुए हैं ? [2120-1 उ.] गौतम ! नहीं हुए हैं। [प्र.] भगवन् ! इसके भावी (केवलिसमुद्घात) कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! वे भी नहीं होते। [2] एवं जाव वेमाणियत्ते / णवरं मणूसत्ते अतीया त्थि, पुरेवखडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि, जस्सऽत्थि एक्को। 2120-2] इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्याय तक में (केवलिसमुद्घात कहना चाहिए।) विशेष यह है कि मनुष्यपर्याय में अतीत (केवलिसमुद्घात) नहीं होता / भावी (केवलिसमुद्घात)किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होता है, उसके एक होता है। [3] मणसस्स मणूसत्ते अतीया कस्सइ अस्थि कस्सइ गस्थि, जस्सऽस्थि इक्को। एवं पुरेक्खडा वि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org