Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 248] [प्रज्ञापनासूत्र एक-एक असुरकुमार के नैरयिक-अवस्था में अनन्त वेदनासमुद्धात अतीत हुए हैं, क्योंकि उसने अतीतकाल में अनन्त बार नारक-अवस्था प्राप्त की है और एक-एक नारकभव में संख्यात वेदनासमुद्घात होते हैं। एक-एक असुरकुमार के नारक-अवस्था में भावी वेदनासमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त वेदनासमुद्घात होते हैं। जो असुरकुमार के भव से निकल कर नरकभव में कभी जन्म नहीं लेगा, किन्तु अनन्तर भव में या फिर परम्परा से मनुष्यभव प्राप्त करके सिद्ध हो जाएगा, उसके नारक पर्यायभावी अागामी वेदनासमुद्घात नहीं होते, क्योंकि उसे नारकपर्याय ही प्राप्त होने वाला नहीं है। जो असुरकुमार उस भव के पश्चात् परम्परा से नरक में जाएगा, उसके भावो वेदनासमुद्घात होते हैं तथा उनमें से जो एक बार जघन्य स्थिति वाले नरक में उत्पन्न होगा, उस असुरकुमार के जघन्य भी संख्यात वेदनासमुद्घात होते हैं। क्योंकि नरक में वेदना की बहुलता होती है। कई बार जघन्यस्थिति वाले नरक में जाने पर असंख्यात वेदनासमुद्धात होंगे और अनन्त बार नरक में जाए तो अनन्त वेदनासमुद्घात होंगे। ___ एक-एक असुरकुमार के असुरकुमारावस्था में अतीतकाल में (यानी जब वह असुरकुमारपर्याय में था, तब) अनन्त वेदनासमुद्धात अतीत हुए हैं तथा इसी अवस्था में भावी वेदनासमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त भावी वेदनासमुद्धात होते हैं। इनमें से जो असुरकुमार संख्यातवार, असंख्यातवार या अनन्तवार पुनः-पुनः असुरकुमाररूप में उत्पन्न होगा, उसके भावी वेदनासमुद्घात क्रमशः संख्यात, असंख्यात या अनन्त होंगे। जैसे असुरकुमार के असुरकुमारावस्था में वेदनासमुद्घात कहे हैं, उसी प्रकार असुरकुमार के नागकुमारावस्था में भी यावत् वैमानिक अवस्था में भी अनन्त वेदनासमुद्घात प्रतीत हुए हैं। भावी समुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन तथा उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं / युक्ति पूर्ववत् समझनी चाहिए। जिस प्रकार असुरकुमार के नारक-अवस्था से लेकर वैमानिक-अवस्था तक में वेदनासमुद्घात का प्रतिपादन किया गया है, उसी प्रकार नागकुमार आदि के बेदनासमुद्घात का प्ररूपण भी समझ लेना चाहिए। तात्पर्य यह है कि असुरकुमार के असुरकुमाररूप स्वस्थान में कितने अतीत-अनागत वेदनासमुद्घात हैं ? तथा नारक आदि परस्थानों में कितने वेदनासमुद्घात अतीत अनागत हैं ? इस विषय में जैसे ऊपर बतलाया गया है, उसी प्रकार नागकुमार आदि से लेकर वैमानिकों तक भी स्वस्थानों और परस्थानों में वेदनासमुद्घात समझ लेने चाहिए। ___ इस प्रकार चौवीस दण्डकों में से प्रत्येक दण्डक का 24 दण्डकों को लेकर कथन करने पर 1056 आलापक होते हैं, क्योंकि 24 को 24 से गुणा करने पर 1056 संख्या होती है।' कषायसमुद्घात-एक-एक नारक के नारकावस्था में अनन्त कषाय समुद्घात सम्पूर्ण अतीतकाल की अपेक्षा से व्यतीत हुए हैं तथा भावी कषायसमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं / 1. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. 7, पृ. 440 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org