Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 194] [प्रज्ञापनासूत्र और सर्वोत्कृष्ट अवधि को परमावधि या सर्वावधि कहते हैं / सर्वजघन्य अवधिज्ञान द्रव्य की अपेक्षा तैजसवर्गणा और भाषावर्गणा के अपान्तरालवर्ती द्रव्यों को, क्षेत्र की अपेक्षा अंगुल के असंख्यातवें भाग को, काल की अपेक्षा प्रावलिका के असंख्यातवें भाग अतीत और अनागत काल को जानता है / यद्यपि अवधिज्ञान रूपी पदार्थों को जानता है, इसलिए क्षेत्र और काल अमूर्त होने के कारण उनको साक्षात् ग्रहण नहीं कर सकता, क्योंकि वे अरूपी हैं, तथापि उपचार से क्षेत्र और काल में जो रूपी द्रव्य होते हैं, उन्हें जानता है तथा भाव से अनन्त पर्यायों को जानता है / द्रव्य अनन्त होते हैं, अतः कम से कम प्रत्येक द्रव्य के रूप, रस, गन्ध और स्पर्श रूप चार पर्यायों को जानता है। यह हुआ सर्वजघन्य अवधिज्ञान / इससे आगे पुनः प्रदेशों की वृद्धि से, काल की वृद्धि से, पर्यायों की वृद्धि से बढ़ता हुआ अवधिज्ञान मध्यम कहलाता है। जब तक सर्वोत्कृष्ट अवधिज्ञान न हो जाए, तब तक मध्यम का ही रूप समझना चाहिए / सर्वोत्कृष्ट अवधिज्ञान द्रव्य की अपेक्षा समस्त रूपी द्रव्यों को जानता है, क्षेत्र की अपेक्षा सम्पूर्ण लोक को और अलोक में लोकप्रमाण असंख्यात खण्डों को जानता है, काल की अपेक्षा असंख्यात अतीत और अनागत उत्सपिणियों अवसपिणियों को जानता है तथा भाव की अपेक्षा अनन्त पर्यायों को जानता है, क्योंकि वह प्रत्येक द्रव्य की संख्यात-असंख्यात पर्यायों को जानता है।' छठा-सातवाँ अवधि-क्षय-वृद्धि आदि द्वार 2027. गेरइयाणं भंते ! श्रोही किं प्राणुगामिए प्रणाणुगामिए वड्ढमाणए हायमाणए पडिवाई अपडिवाई प्रवट्ठिए अणवट्टिए ? गोयमा ! पाणुगामिए, नो प्रणाणुगामिए नो वड्ढमाणए णो हायमाणए णो पडिवाई, अपडिवादी प्रवटिए, णो अणव ट्ठिए। [2027 प्र.] भगवन् ! नारकों का अवधि (ज्ञान) क्या प्रानुगामिक होता है, अनानुगागिक होता है, वर्द्धमान होता है. हीयमान होता है, प्रतिपाती होता है, अप्रतिपाती होता है, अवस्थित होता है, अथवा अनवस्थित होता है ? . [2027 उ.] गौतम ! वह अनुगामिक है, किन्तु अनानुगामिक, वर्धमान, हीयमान, प्रतिपाती और अनवस्थित नहीं होता, अप्रतिपाती और अवस्थित होता है। 2028. एवं जाव थणियकुमाराणं / [2028] इसी प्रकार (असुरकुमारों से लेकर) यावत् स्तनितकुमारों तक के विषय में जानना चाहिए। 2026. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! आणुगामिए वि जाव अणट्ठिए वि / __ [2028 प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों का अवधि(ज्ञान) आनुगामिक होता है ?, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [2026 उ.] गौतम ! वह प्रानुगामिक भी होता है, यावत् अनवस्थित भी होता है। 1. प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भा. 5, पृ. 776 से 777 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org