Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ चौतीसवाँ परिचारणापद] [209 छठा परिचाररणाद्वार 2051. देवा णं भंते ! कि सदेवीया सपरियारा सदेवीया अपरियारा प्रदेवीया सपरियारा प्रदेवीया अपरियारा? __ गोयमा ! प्रत्येगइया देवा सदेवीया सपरियारा 1 अत्थेगइया देवा अदेवीया सपरियारा 2 प्रत्थेगइया देवा प्रदेवीया अपरियारा 3 णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा। से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा तं चेव जाव णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा? गोयमा ! भवणवति-वाणमंतर-जोतिस-सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवा सदेवीया सपरियारा, सणंकुमार-माहिद-बंभलोग-लंतग-महासुक्क-सहस्सार-आणय-पाणय-भारण-अच्चुएसु कप्पेसु देवा प्रदेवीया सपरियारा, गेवेज्जऽणुत्तरोववाइयदेवा अदेवीया अपरियारा, णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा, से तेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा तं चेव जाव णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा। [2051 प्र.] भगवन् ! (1) क्या देव देवियों सहित और सपरिचार (परिचारयुक्त) होते हैं ?, (2) अथवा वे देवियोंसहित एवं अपरिचार (परिचाररहित) होते हैं ? , (3) अथवा वे देवीरहित एवं परिचारयुक्त होते हैं ? या (4) देवीरहित एवं परिचाररहित होते हैं ? [2051 उ.] गौतम ! (1) कई देव देवियोंसहित सपरिचार होते हैं, (2) कई देव देवियों के बिना सपरिचार होते हैं और (3) कई देव देवीरहित और परिचाररहित होते हैं, किन्तु कोई भी देव देवियों सहित अपरिचार (परिचाररहित) नहीं होते हैं / [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि कई देव देवीसहित सपरिचार होते हैं, इत्यादि यावत् देवियों सहित परन्तु अपरिचार नहीं होते / [उ.] गौतम ! भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म तथा ईशानकल्प के देव देवियों सहित और परिचारसहित होते हैं। सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युत कल्पों में देव, देवीरहित किन्तु परिचारसहित होते हैं। नौ ग्रे वेयक और पंच अनुत्तरोषपातिक देव देवीरहित और परिचाररहित होते हैं। किन्तु ऐसा कदापि नहीं होता कि देव देवीसहित हों, साथ ही परिचार-रहित हों। 2052. [1] कतिविहा णं भंते ! परियारणा पण्णता ? गोयमा ! पंचविहा पण्णता / तं जहाकायपरियारणा 1 फासपरियारणा 2 रूवपरियारणा 3 सहपरियारणा 4 मणपरियारणा 5 / से केणठेणं भंते ! एवं वुच्चति पंचविहा परियारणा पण्णत्ता तं जहा-कायपरियारणा जाव मणपरियारणा? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org