________________ 224] पैितीसवाँ वेदनापद विवेचन-दो प्रकार की विशिष्ट वेदना : स्वरूप और अधिकारी--स्वेच्छापूर्वक अंगीकार की जाने वाली वेदना आभ्युपगमिकी कहलाती है। जैसे-साधुगण केशलोच, तप, आतापना आदि से होने वाली शारीरिक पीड़ा स्वेच्छा से स्वीकार करते हैं। जो वेदना स्वयमेव उदय को प्राप्त अथवा उदीरित वेदनीयकर्म से उत्पन्न होती है, वह औपक्रमिकी कहलाती है, जैसे नारक आदि की वेदना / नारकों से लेकर चतुरिन्द्रिय जीवों तक की वेदना प्रौपक्रमिकी होती है. इसी तरह वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक को वेदना भी औपक्रमिको होती है। पंचेन्द्रियतिर्यंचों और मनुष्यों की वेदना दोनों ही प्रकार की होती है / ' सप्तम निदा-अनिदा-वेदना-द्वार 2077. कति विहा णं भंते ! वेदणा पण्णता? गोयमा ! दुविहा वेयणा पग्णत्ता / तं जहा-णिदा य अणिदा य / [2077 प्र.] भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ? [2077 उ.] गौतम ! वेदना दो प्रकार की कही गई है। यथा--निदा और अनिदा। 2078. रइया णं भंते ! कि णिदायं वेदणं वेदेति प्रणिदायं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! णिदायं पि वेदणं वेदेति अणिदाय पि वेदणं वेदेति / से केणठेणं भंते ! एवं बुच्चति रइया णिदायं पि वेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति ? गोयमा ! जेरइया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा-सण्णिभूया य असणिभूयाय / तत्थ णं जे ते सण्णिभूया ते णं निदायं वेदणं वेदेति, तत्थ णं जे ते असण्णिभूया ते णं अणिदायं वेदणं वेदेति, से तेणठेणं गोयम तेणटठेणं गोयमा! एवं वच्चति रद्धया निदायं पिवेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति / [2078 प्र.] भगवन् ! नारक निदावेदना वेदते हैं, या अनिदावेदना ? [2078 उ ] गौतम ! नारक निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदावेदना भी। [प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि नारक निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदावेदना भी वेदते हैं ? [उ.] गौतम ! नारक दो प्रकार के कहे गए हैं / यथा-संज्ञीभूत और असंज्ञी भूत / उनमें जो संज्ञीभूत नारक होते हैं, वे निदावेदना को वेदते हैं और जो असंज्ञीभूत नारक होते हैं, वे अनिदावेदना वेदते हैं / हे गौतम ! इसी कारण ऐसा कहा जाता है कि नारक निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदा. वेदना भी। 2076. एवं जाव थणियकुमारा। [2079] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए। 1. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टोका). भाग 5, पृ. 901-902 (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र 557 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org