________________ N 230] [प्रज्ञापनासूत्र आहारकसमुद्घात आहारकशरीरनाम-कर्माश्रय है और केवलिसमुद्घात साता-असातावेदनीय, शुभअशुभनामकर्म और उच्चनीचगोत्र-कर्माश्रय है / 1. वेदनासमुद्घात की प्रक्रिया और परिणाम-वेदनासमुद्घात करने वाला जीव असातावेदनीय कर्म के पुद्गलों की परिशाटना (निर्जरा) करता है। प्राशय यह है कि वेदना से पीड़ित जीव अनन्तानन्त कर्मपुद्गलों से व्याप्त अपने प्रात्मप्रदेशों को शरीर से बाहर निकालता है और मुख एवं उदर आदि छिद्रों को तथा कान, स्कन्ध आदि के अपान्तरालों (बीच के रिक्त स्थानों) क करके, लम्बाई और विस्तार में शरीरमात्र क्षेत्र को व्याप्त करके अन्तर्मुहूर्त तक रहता है / उस अन्तमुहर्त में वह बहुत-से असातावेदनीयकर्म के पुद्गलों को निर्जीर्ण कर डालता है। 2. कषायसमुद्घात की प्रक्रिया और परिणाम कषायसमुद्घात करने वाला जीव कषायचारित्रमोहनीयकर्म के पुदगलों का परिशाटन करता है---कषाय के उदय से युक्त जीव अपने प्रदेशों को बाहर निकालता है / उन प्रदेशों से मुख, उदर आदि छिद्रों को तथा कान, स्कन्ध आदि अन्तरालों को पूरित करता है / लम्बाई तथा विस्तार से शरीरमात्र क्षेत्र को व्याप्त करके रहता है। ऐसा करके वह बहुत-से कषायकर्मपुद्गलों का परिशाटन करता है-झाड़ देता है। 3. मारणान्तिकसमुद्घात की प्रक्रिया और परिणाम मारणान्तिकसमुद्घात करने वाला जीव आयुकर्म के पुद्गलों का परिशाटन करता है। इस समुद्घात में यह विशेषता है कि मारणान्तिकसमुद्घात करने वाला जीव अपने प्रदेशों को बाहर निकाल कर मुख तथा उदर आदि के छिद्रों को न्ध अादि अन्तरालों को पूरित करके विस्तार और मोटाई में अपने शरीरप्रमाण होकर किन्तु लम्बाई में अपने शरीर के अतिरिक्त जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग तक और उत्कृष्ट असंख्यात योजन तक एक दिशा के क्षेत्र को व्याप्त करके रहता है। 4. वैक्रियसमुद्घात को प्रक्रिया और परिणाम - वैक्रियसमुद्घात करने वाला जीव अपने प्रदेशों को शरीर से बाहर निकाल कर शरीर के विस्तार और मोटाई के बराबर तथा लम्बाई में संख्यातयोजनप्रमाण दण्ड निकालता है। फिर यथासम्भव वैक्रियशरीरनामकर्म के स्थूल पुद्गलों का परिशाटन करता है। 5. तेजससमुद्घात की प्रक्रिया और परिणाम-तैजससमुद्घात करने वाला जीव तेजोलेश्या के निकालने के समय तैजसशरीरनामकर्म के पुद्गलों का परिशाटन करता है। 6. आहारकसमुद्घात की प्रक्रिया और परिणाम प्राहारकसमुद्घात करने वाला पाहारकशरीरनामकर्म के पुद्गलों का परिशाटन करता है / / 7. केवलिसमुद्घात की प्रक्रिया और परिणाम- केवलिसमुद्घात करने वाला जीव साताअसातावेदनीय आदि कर्मों के पुद्गलों का परिशाटन करता है / केवली ही केवलिसमुद्घात करता है। इसमें आठ समय लगते हैं / केवलिसमुद्घात करने वाला केवली प्रथम समय में मोटाई में अपने शरीर प्रमाण आत्मप्रदेशों का दण्ड ऊपर और नीचे लोकान्त तक रचता है। दूसरे समय में पूर्व, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण दिशा में कपाट की रचना करता है। तीसरे समय में मन्थान (मथानी) की रचना करता है। चौथे समय में अवकाशान्तरों को पूरित करता (भरता) है। पांचवें समय में उन अवका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org