________________ छत्तीसयां समुद्घातपद] [237 चौवीस दण्डकों में बहुत्व की अपेक्षा से अतीत-अनागत-समुद्घात-प्ररूपणा 2067. [1] रइयाणं भंते ! केवतिया वेदणासमुग्घाया प्रतीता ? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा ? गोतमा ! अणंता। [2097-1 प्र.] भगवन् ! नारकों के कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं ? [2097-1 उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं / [प्र.] भगवन् ! (उनके) भावी वेदनासमुद्घात कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! वे भी अनन्त होते हैं / [2] एवं जाव वेमाणियाणं / [2067-2] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों (के वेदनासमुद्धात) तक (के विषय में जानना चाहिए)। 2068. [1] एवं जाव तेयगसमुग्घाए / [2068-1] इसी प्रकार ( वेदनासमुद्घात के समान ) यावत् तैजससमुद्धात पर्यन्त समझना चाहिए। [2] एवं एते वि पंच चउवीसा दंडगा। [2018-2] इस प्रकार इन (वेदना से लेकर तैजस तक) पांचों समुद्घातों का (कथन) . चौवीसों दण्डकों में (बहुवचन के रूप में समझ लेना चाहिए / ) 2066. [1] रइयाणं भंते ! केवतिया पाहारगसमुग्घाया प्रतीया? गोयमा! असंखेज्जा। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा! असंखेज्जा। [2066-1 प्र.] भगवान् ! नारकों के कितने पाहारकसमुद्घात प्रतीत हुए हैं ? [2066-1 उ.] गौतम ! वे असंख्यात हुए हैं। [प्र.] भगवन् ! उनके आगामी आहारकसमुद्घात कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! वे भी असंख्यात होते हैं। [2] एवं जाव वेमाणियाणं / गवरं वणप्फइकाइयाणं मणूसाण य इमं णाणत्तं / वणप्फइकाइयाणं भंते ! केवतिया आहारगसमुग्धाया प्रतीता ? गोयमा! अणंता। मणसाणं भंते ! केवतिया पाहारगसमुग्घाया अतीता? गोयमा ! सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा / एवं पुरेक्खडा वि / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org