________________ 236] [प्रज्ञापनासूत्र भिन्न नारक के जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार भावी आहारकसमुद्घात होते हैं। इससे अधिक भावी आहारकसमुद्घात नहीं हो सकते, क्योंकि तदनन्तर वह जीव नियम से किसी दूसरी गति में नहीं जाता और आहारक-समुद्धात किये बिना ही सिद्धि प्राप्त कर लेता है। इसी प्रकार असुरकुमारादि भवनपतियों से लेकर वैमानिकों तक के अतीत और अनागत पाहारकसमुद्घात के विषय में समझ लेना चाहिए / परन्तु मनुष्य के अतीत और अनागत आहारकसमुद्घात नारक के अतीत और अनागत आहारकसमुद्घात के समान हैं। नारक के अतीत और अनागत जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार हैं, इसी प्रकार मनुष्य के हैं।' (7) केवलिसमुद्घात-एक-एक नारक के अतीतकेवलिसमुद्घात एक भी नहीं है, क्योंकि केवलिसमुद्धात के पश्चात् नियम से अन्तर्मुहूर्त में ही जीव को मोक्ष प्राप्ति हो जाती है / फिर उसका नरक में जाना और नारक होना सम्भव नहीं है / अतएव किसी भी नारक के अतीतकेवलिसमुद्घात सम्भव नहीं है। अब रहा नारक के भावीकेवलिसमुद्घात का प्रश्न यह किसी के होता है, किसी के नहीं होता / जिस नारक के होता है, उसके एक हो केवलिसमुद्घात होता है। एक से अधिक नहीं हो सकता, क्योंकि एक केवलिसमुद्घात के द्वारा ही चारों अघातिक कर्मों की स्थिति समान करके केवली अन्तर्मुहूर्त में ही मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं। फिर दूसरी बार किसी को भी केवलिसमुद्घात की आवश्यकता नहीं होती। जो नारक भवभ्रमण करके मुक्तिपद प्राप्त करने का अवसर पायेगा, उस समय उसके अघातीकर्मों की स्थिति विषम होगी तो उसे सम करने के लिए वह केवलिसमुद्घात करेगा। यह उसका भावीकेवलिसमुद्घात होगा / जो नारक केवलिसमुद्घात के बिना ही मुक्ति प्राप्त करेगा अथवा जो (अभव्य) कभी मुक्ति प्राप्त कर ही नहीं सकेगा, उसकी अपेक्षा से भावीकेवलिसमुद्घात नहीं होता। मनुष्य के अतिरिक्त भवनपति, पृथ्वीकायिक आदि एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय, पंचेन्द्रियतिर्यञ्च, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव के भी अतीत केवलिसमुद्घात नहीं होता / भावी केवलिसमदघात किसी के होता है, किसी के नहीं होता। जिसके होता है, एक ही होता है। युक्ति पूर्ववत् समझना / किसी मनुष्य के अतीत केवलिसमुद्घात होता है, किसी के नहीं। केवलिसमुद्घात जिसके होता है, एक ही होता है। जो मनुष्य के वलिस मुद्घात कर चुका है और अभी तक मक्त नहीं हुआ है--अन्तर्मुहूर्त में मुक्त होने वाला है, उसकी अपेक्षा से अतीत केवलिसमुद्घात है; किन्तु जिस मनुष्य ने केवलिसमुद्घात नहीं किया है, उसकी अपेक्षा से नहीं है। अतीतकेवलिसमद्घात के समान मनुष्य के भावीकेवलिसमुद्घात का कथन भी जान लेना चाहिए। अतीत की तरह भावी केवलिसमुद्घात भी किसी का होता है, किसी का नहीं। जिसका होता है, उसका एक ही होता है, अधिक नहीं / 1. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भा. 5, पृ. 930 से 932 तक (ख) प्रज्ञापना. मलयवत्ति, अ. रा. कोष भा. 7, पृ. 438 2. (क) वही, अ. रा. कोष भा. 7, पृ. 438 (ख) प्रज्ञापना (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. 5, पृ. 933 से 935 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org