Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________ 240] [प्रज्ञापनासूत्र करने पर जो परिमाण आता है, उतने प्रदेशोंवाले खण्ड-धनीकृत लोक की एक प्रदेश वाली श्रेणी में जितने मनुष्य होते हैं, उनमें से एक कम करने पर जितने मनुष्य हों, उतने ही हैं। ये मनुष्य नारक आदि अन्य जीवराशियों की अपेक्षा कम हैं। उनमें भी ऐसे मनुष्य कम हैं, जिन्होंने पूर्वभवों में आहारकशरीर बनाया हो, इस कारण वे कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात होते हैं। इसी प्रकार मनुष्यों के भावी आहारकसमुद्घात भी पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार कदाचित् संख्यात और कदाचित् असंख्यात समझने चाहिए।' केवलिसमुद्घात–नारकों के अतीत केवलिसमुद्घात एक भी नहीं होता, क्योंकि जिन जीवों ने केवलिसमुद्घात किया है, उनका नारक में जाना और नारक होना सम्भव नहीं है / नारकों के भावी केवलिसमुद्घात असंख्यात हैं, क्योंकि पृच्छा के समय सदैव भविष्य में केवलिसमुद्घात करने वाले नारक असंख्यात ही होते हैं / केवलज्ञान से ऐसा ही जाना जाता है / नारकों के समान ही वनस्पतिकायिकों एवं मनुष्यों को छोड़कर असुरकुमारादि भवनपतियों से लेकर वैमानिकों तक भी इसी प्रकार समझना चाहिए। इनके भी अतीत केवलिसमुद्घात नहीं होते और भावी केवलिसमुद्धात असंख्यात होते हैं / वनस्पतिकायिकों के अतीत केवलिसमुद्धात पूर्वोक्त युक्ति के अनुसार नहीं होते / इनके भावीकेवलिसमुद्धात अनन्त होते हैं, क्योंकि वनस्पतिकायिकों में अनन्त जीव ऐसे होते हैं, जो भविष्यत्काल में केवली होकर केवलिसमुद्घात करेंगे। मनुष्यों के अतीत केवलिसमुद्घात कदाचित् होते हैं, कदाचित् नहीं होते / पच्छा के समय अगर केवलिसमुद्घात से निवृत्त कोई मनुष्य (केवली) विद्यमान हों तो अतीत केवलिसमुदघात होते हैं, अन्य समय में नहीं होते / यदि अतीत केवलिसमुद्घात हों तो वे जघन्यतः एक, दो या तीन होते . हैं और उत्कृष्टतः शतपृथक्त्व अर्थात् दो सौ से लेकर नौ सौ तक होते हैं। मनुष्यों के भावी केवलिसमुद्घात कदाचित संख्यात् और कदाचित् असंख्यात होते हैं। समूच्छिम और गर्भज मनुष्यों में पृच्छा के समय बहुत से अभव्य भी होते हैं, जिनके भावी केवलिसमुद्घात सम्भव नहीं, इस अपेक्षा से भावी केवलिसमुद्घात संख्यात होते हैं। कदाचित् वे असंख्यात भी होते हैं, क्योंकि उस समय भविष्य में केवलिसमुद्घात करने वाले मनुष्य बहुत होते हैं / 2 चौवीस दण्डकों की चौवीस दण्डक पर्यायों में एकत्व को अपेक्षा से अतीतादि समुद्घातप्ररूपणा 2101. [1] एगमेगस्स गं भंते ! रइयस्स रइयत्ते केवतिया वेदणासमुग्घाया अतीया ? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि / जस्सऽस्थि जहणणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा प्रणता वा। 1. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, प्र. रा. कोष, भा. 7, पृ. 439 2. वही, मलयवृत्ति, अ. रा. कोष, भा. 7, पृ. 439 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org