Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 242] [प्रज्ञापनासूत्र ते विजाब वेमाणियत्ते। [2103-2] इसी प्रकार नागकुमारपर्याय यावत् वैमानिकपर्याय में रहते हुए अतीत और अनागत वेदनासमुद्घात समझने चाहिए। 2104. [1] एवं जहा वेदणासमुग्धाएणं असुरकुमारे रइयादि-वेमाणियपज्जवसाणेसु भणिए तहा णागकुमारादीया अवसेसेसु सट्ठाण-परट्ठाणेसु भाणियन्वा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते / [2104-1] जिस प्रकार असुरकुमार के नारकपर्याय से लेकर वैमानिकपर्याय पर्यन्त वेदनासमुद्घात कहे हैं, उसी प्रकार नागकुमार आदि से लेकर शेष सब स्वस्थानों और परस्थानों में वेदनासमुद्घात यावत् वैमानिक के वैमानिकपर्याय पर्यन्त कहने चाहिए। [2] एवमेते चउन्धोसं चउठवीसा दंडगा भवंति / [2104-2] इसी प्रकार चौवीस दण्डकों में से प्रत्येक के चौवीस दण्डक होते हैं। 2105. एगमेगस्स णं भंते ! रइयस्स णेरइयत्ते केवतिया कसायसमुग्घाया प्रतीया? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि / जस्सऽत्थि एगुत्तरियाए जाव अणंता। [2105 प्र.] भगवन् ! एक-एक नारक के नारकपर्याय (नारकत्व) में कितने कषायसमुद्घात अतीत हुए हैं ? [2105 उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। [प्र.] भगवन् ! भावी कषायसमुद्घात कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके एक से लेकर यावत् अनन्त तक हैं। 2106. एगमेगस्स गं भंते ! नेरइयस्स असुरकुमारत्ते केवतिया कसायसमुग्घाया अतीया ? गोयमा! प्रणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सह अस्थि कस्सइ पत्थि। जस्सऽस्थि सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अणंता। [2106 प्र.] भगवन् ! एक-एक नारक के असुरकुमारपर्याय में कितने कषायसमुद्धात अतीत होते हैं ? [2106 उ.] गौतम ! अनन्त होते हैं। [प्र.] भगवन् ! (उसके) भावी (कषायसमुद्घात) कितने होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org