________________ छत्तीसवां समुद्घातपद] [241 [2101-1 प्र.] भगवन् ! एक-एक नैरयिक के नारकत्व में (अर्थात्-नारक-पर्याय में रहते हुए) कितने वेदनासमुद्धात अतीत हुए हैं। [2101-1 उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं। [प्र.] भगवन् ! (एक-एक नारक के नारकल्ब में) कितने भावी (वेदनासमुद्घात) होते हैं ? [उ.J गौतम ! वे किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं। [2] एवं असुरकुमारत्ते जाव वेमाणियत्ते / [2101-2] इसी प्रकार एक-एक नारक के असुरकुमारत्व यावत् वैमानिकत्व में रहते हुए पूर्ववत् अतीत और अनागत वेदनासमुद्घात समझने चाहिए। 2102. एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स गैरइयत्ते केवतिया वेयणासमुग्घाया अतोता? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि / जस्सऽस्थि तस्स सिय संखेज्जा सिय असंखेज्जा सिय अणंता। [2102 प्र. भगवन् ! एक-एक असुरकुमार के नारकत्व में (रहते हुए) कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं ? [2102 उ.] गौतम ! वे अनन्त हो चुके हैं। [प्र.] भगवन् ! भावी वेदनासमुदघात कितने होते हैं ? [उ.] गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित् अनन्त होते हैं / 2103. [1] एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते केवतिया वेदणासमुग्धाया अतीया? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि / जस्सऽस्थि जहण्णणं एकको वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं संखिज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा। [2103-1 प्र.] भगवन् ! एक-एक असुरकुमार के असुरकुमारपर्याय में कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए हैं ? [2103-1 उ.] गौतम ! वे अनन्त हुए हैं / (प्र] भगवन् ! उनके भावी वेदनासमुद्घात कितने होते हैं ? उ.] गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते / जिसके होते हैं,उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होते हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org