Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ [243 छत्तीसवां समुद्धातपद] [उ.] गौतम ! वे किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके कदाचित् संख्यात, कदाचित् असंख्यात और कदाचित अनन्त होते हैं / __ 2107. एवं जाव रइयस्स थणियकुमारते। पुढविकाइयत्ते एगुत्तरियाए यन्वं, एवं जाव मणूसत्ते। वाणमंतरत्ते जहा असुरकुमारत्ते (सु. 2106) / जोतिसियत्ते अतीया अणंता, पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णस्थि / जस्सऽस्थि सिय असंखेज्जा सिय अणंता / एवं माणियत्ते वि सिय असंखेज्जा सिय अणंता। [2107] इसी प्रकार नारक का यावत स्तनितकुमारपर्याय में (अतीत-अनागत कषायसमुद्घात समझना चाहिए।) नारक का पृथ्वीकायिकपर्याय में एक से लेकर जानना चाहिए / इसी प्रकार यावत मनुष्यपर्याय में समझना चाहिए। वाणव्यन्तरपर्याय में नारक के असुरकुमारत्व (सु. 2106 में उक्त) के समान जानना / ज्योतिष्कदेवपर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त हैं तथा भावी कषायसमुद्घात किसी का होता है, किसी का नहीं होता। जिसका होता है, उसका कदाचित असंख्यात और कदाचित अनन्त होता है। इसी प्रकार वैमानिकपर्याय में भी कदाचित असंख्यात और कदाचित अनन्त (भावी कषायसमुद्धात) होते हैं / 2108. असुरकुमारस्स रइयत्ते अतीता अणंता। पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ गस्थि / जस्सऽस्थि सिय संखेज्जा सिय प्रसंखेज्जा सिय अणंता। [2108] असुरकुमार के नैरयिकपर्याय में अतीत कषायसमुद्घात अनन्त होते हैं। भावी कषायसमुद्घात किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते / जिसके होते हैं, उसके कदाचित संख्यात, कदाचित असंख्यात और कदाचित अनन्त होते हैं। 2106. असुरकुमारस्स असुरकुमारत्ते अतीया अणंता / पुरेक्खडा एगुत्तरिया। [2106] असुरकुमार के असुरकुमारपर्याय में अतीत (कषायसमुद्घात) अनन्त हैं और भावी (कषायसमुद्धात) एक से लेकर कहने चाहिए। 2110. एवं नागकुमारत्ते निरंतरं जाव वेमाणियत्ते जहा रइयस्स भणियं (सु. 2107) तहेव भाणियव्वं / [2110] इसी प्रकार नागकुमारत्व से लेकर लगातार यावत वैमानिकत्व तक जैसे (2107 सूत्र में) नैरयिक के लिए कहा है, वैसे ही कहना चाहिए। 2111. एवं जाव थणियकुमारस्स वि [जाव] वेमाणियत्ते / णवरं सवेसि सटाणे एगुत्तरिए परटाणे जहेव असुरकुमारस्स (सु. 2108-10) / [2111] इसी प्रकार यावत स्तनितकुमार तक भी यावत् वैमानिकत्व में पूर्ववत् कथन समझना चाहिए। विशेष यह है कि इन सबके स्वस्थान में भावी कषायसमुद्धात एक से लगा कर (उत्तरोत्तर अनन्त तक) हैं और परस्थान में (सू. 2108-10 के अनुसार) असुरकुमार के (भावी कषायसमुद्घात के) समान हैं / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org