________________ छत्तीसवाँ समुद्घातपद) [231 शान्तरों को सिकोड़ता है, छठे समय में मन्थान को सिकोड़ता है, सातवें समय में कपाट को संकुचित करता है और पाठवें समय में दण्ड का संकोच करके अात्मस्थ हो जाता है।' समुद्घात-काल-प्ररूपणा 2087. [1] वेदणासमुग्धाए गं भंते ! कतिसमइए पण्णत्ते ? गोयमा ! असंखेज्जसमइए अंतोमुहुत्तिए पण्णत्ते। [2087-1 प्र.] भगवन् ! वेदनासमुद्घात कितने समय का कहा गया है ? [2087-1 उ.] गौतम ! वह असंख्यात समयों वाले अन्तर्मुहूर्त का कहा है। [2] एवं जाव पाहारगसमुग्घाए। [2087-2] इसी प्रकार यावत् आहारकसमुद्घात पर्यन्त कथन करना चाहिए। 2088. केवलिसमुग्घाए णं भंते ! कतिसमइए पण्णते ? गोयमा ! अटुसमइए पण्णत्ते। (2088 प्र.] भगवन् ! केवलिसमुद्घात कितने समय का कहा है ? [2088 उ.] गौतम ! वह पाठ समय का कहा है / विवेचन--निष्कर्ष वेदनासमुद्धात से लेकर आहारकसमुद्घात तक समुद्घातकाल अन्तमुहर्त का है, किन्तु वह अन्तर्मुहूर्त असंख्यात समयों का समझना चाहिए। केवलिसमुद्घात का काल आठ समय का है। चौवीस दण्डकों में समुद्घात-संख्या-प्ररूपणा 2086. रइयाणं भंते ! कति समुग्धाया पण्णता? गोयमा ! चत्तारि समुग्घाया पण्णत्ता। तं जहा- वेदणासमुग्घाए 1 कसायसमुग्घाए 2 मारणंतियसमुग्धाए 3 वेउब्वियसमुग्घाए 4 / [2086 प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के कितने समुद्घात कहे हैं ? / [2086 उ.] गौतम ! उनके चार समुद्घात कहे हैं / यथा-(१) वेदनासमुद्घात, (२)कषायसमुद्घात, (3) मारणान्तिकसमुद्घात एवं (4) वैक्रियसमुद्घात / 2060. [1] असुरकुमाराणं भंते ! कति समुग्धाया पण्णता? गोयमा ! पंच समुग्धाया पण्णत्ता। तं जहा- वेदणासमुग्घाए 1 कसायसमुग्घाए 2 मारणंतियसमुग्घाए 3 वेउव्वियसमुग्धाए 4 तेयासमुग्घाए 5 / [2060 प्र.] भगवन् ! असुरकुमारों के कितने समुद्घात कहे हैं ? 1. प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टोका) भा. 5, पृ. 913-914 2. प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. 5, पृ. 919-920 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org