________________ छत्तीसवाँ समुद्घातपद] [233 ही समुद्घात पाये जाते हैं। तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों से लेकर वैमानिकों तक पांच समुद्घात इसलिए पाये जाते हैं कि तिर्यञ्च पचेन्द्रियों आदि में आहारकलब्धि और केवलित्व नहीं होते / अतः अन्तिम दो समुद्घात उनमें नहीं पाये जाते / ' चौवीस दण्डकों में एकत्वरूप से अतीतादि-समुद्घात-प्ररूपणा 2063. [1] एगमेगस्स णं भंते ! रइयस्स केवतिया वेदणासमुग्घाया अतीता? गोयमा ! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा ? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ गस्थि, जस्सऽस्थि जहष्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा / [2063-1 प्र.] भगवन् ! एक-एक नारक के कितने वेदनासमुद्घात अतीत-व्यतीत हुए हैं ? [2093-1 उ.] हे गौतम ! वे अनन्त हुए हैं / [प्र. भगवन् ! वे भविष्य में (आगे) कितने होने वाले हैं ? [उ.] गौतम ! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं / [2] एवं असुरकुमारस्स बि, णिरंतरं जाव वेमाणियस्स / [2063-2] इसी प्रकार असुरकुमार के विषय में भी जानना चाहिए / यहाँ से लगातार वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए। 2064. [1] एवं जाव तेयगसमुग्घाए / [2064-1] इसी प्रकार यावत् तैजससमुद्घात तक (जानना चाहिए।) [2] एवं एते पंच चउवीसा दंडगा। [2094-2] इसी प्रकार ये पांचों समुद्घात (वेदना, कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय और तेजस) भी चौवीस दण्डकों के क्रम से समझ लेने चाहिए। 2065. [1] एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स केवतिया पाहारगसमुग्धाया प्रतीता? गोयमा ! कस्सइ अस्थि कस्सइ गस्थि / जस्सऽस्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा, उक्कोसेणं तिष्णि। केवतिया पुरेक्खडा? कस्सइ अस्थि कस्सइ थि। जस्सऽस्थि जहणणं एक्को वा दो वा तिणि वा, उक्कोसेणं चत्तारि / [2065-1 प्र] भगवन् ! एक-एक नारक के अतीत आहारकसमुद्घात कितने हैं ? 1. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष भा. 7, पृ. 436 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org