Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 232 प्रज्ञापनासून [2090-1 उ.] गौतम ! उनके पांच समुद्धात कहे हैं / यथा-(१) वेदनासमुद्घात, (2) कषायसमुद्धात, (3) मारणान्तिकसमुद्घात, (4) वैक्रियसमुद्घात और (5) तैजससमुद्घात / [2] एवं जाव थणियकुमाराणं / [2090-2] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त कहना चाहिए / 2061. [1] पुढविक्काइयाणं भंते ! कति समुग्घाया पण्णता? गोयमा ! तिण्णि समुग्घाया पण्णता। तं जहा-वेदणासमुग्घाए 1 कसायसमुग्घाए 2 मारणंतियसमुग्घाए 3 / [2061-1 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीवों के कितने समुद्घात कहे हैं ? [2061-1 उ.] गौतम ! उनके तीन समुद्घात कहे हैं। यथा-(१) वेदनासमुद्घात, (2) कषायसमुद्घात और (3) मारणान्तिकसमुद्घात / [2] एवं जाव चरिदियाणं / णवरं वाउक्काइयाणं चत्तारि समुग्घाया पण्णत्ता, तं जहा–वेदणासमुग्घाए 1 कसायसमुग्धाए 2 मारणंतियसमुग्घाए 3 वेउब्वियसमुग्घाए 4 / [2061-2] इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष यह है कि वायुकायिक जीवों के चार समुद्घात कहे हैं / यथा-(१) वेदनासमुद्घात, (2) कषायसमुद्घात, (3) मारणान्तिक समुद्घात और (4) वैक्रियसमुद्घात / 2062. पंचेदियतिरिक्खजोणियाणं जाव वेमाणियाणं भंते ! कति समुग्घाया पण्णता ? गोयमा ! पंच समुग्घाया पण्णत्ता / तं जहा-वेदणासमुग्घाए 1 कसायसमुग्धाए 2 मारणंतियसमुग्घाए 3 वेउब्वियसमुग्धाए 4 तेयासमुग्घाए 5 / गवरं मणूसाणं सत्तविहे समुग्घाए पण्णत्ते, तं जहा वेदगासमुग्घाए 1 कसायसमुग्घाए 2 मारणंतियसमुग्धाए 3 वेउब्वियसमुग्घाए 4 तेयासमुग्धाए 5 प्राहारणसमुग्धाए 6 केवलिसमुग्धाए 7 / / [2092 प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्च से लेकर यावत् वैमानिक पर्यन्त कितने समुद्घात __[2062 उ.] गौतम ! उनके पांच समुद्घात कहे हैं / यथा-(१) वेदनासमुद्घात,(२)कषायसमुद्घात, (3) मारणान्तिकसमुद्धात, (4) वैक्रियसमुद्घात और (5) तैजससमुद्घात / विशेष यह है कि मनुष्यों के सात समुद्घात कहे हैं। यथा--(१) वेदनासमुद्घात, (2) कषायसमुद्घात, (3) मारणान्तिकसमुद्घात, (4) वैक्रियसमुद्घात, (5) तैजसस मुद्घात, (6) आहारकसमुद्धात और (7) केवलिसमुद्घात। विवेचन समुद्धात : किसमें कितने और क्यों ? --नारकों में आदि के 4 समुद्घात होते हैं, क्योंकि नारकों में तेजोलब्धि, आहारकलब्धि और केवलित्व का अभाव होने से तैजस, आहारक और केवलिसमुद्धात नहीं होते। असुरकुमारादि दस भवनपति देवों में प्रारम्भ के चार और पांचवां तैजससमुद्धात भी हो सकता है। पृथ्वीकायिकादि पांच स्थावरों में प्रारम्भ के तीन समुद्धात होते हैं, किन्तु वायुकायिक जीवों में पहले के तीन और एक वैक्रियसमुद्घात, यों चार समुद्घात होते हैं। पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों से लेकर वैमानिकों तक प्रारम्भ के पांच समुद्घात पाये जाते हैं / किन्तु मनुष्यों में सातों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org