________________ पंतीसवां वेवनापद] [225 2080. पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा ! णो निदायं वेदणं वेदेति, प्रणिदायं वेदणं वेदेति / से केणोणं भंते ! एवं वुच्चति पुढविक्काइया णो हिदायं वेदणं वेदेति अणिदायं वेयणं बेति? गोयमा ! पुढविक्काइया सवे असण्णो असण्णिभूतं अणिदायं वेदणं वेदेति, से तेणठेणं गोयमा ! एवं बुच्चति पुढविक्काइया णो णिदायं वेयणं वेदेति, अणिदायं वेदणं वेदेति / [2080 प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव निदावेदना वेदते हैं या अनिदावेदना वेदते हैं ? [2080 उ.] गौतम ! वे निदावेदना नहीं वेदते, किन्तु अनिदावेदना वेदते हैं / [प्र.} भगवन् ! किस कारण से यह कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक जीव निदावेदना नहीं वेदते, किन्तु अनिदावेदना वेदते हैं ? [उ ] गौतम ! सभी पृथ्वी कायिक असंज्ञी और असंज्ञीभूत होते हैं, इसलिए अनिदावेदना वेदते हैं, (निदा नहीं); इस कारण से हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि पृथ्वीकायिक जीव निदावेदना नहीं वेदते, किन्तु अनिदावेदना वेदते हैं / 2081. एवं जाव चरिदिया। [2081] इसी प्रकार यावत् चतुरिन्द्रिय पर्यन्त (कहना चाहिए / ) 2012. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया मणूसा वाणमंतरा जहा रइया (सु. 2078) / [2082] पचेन्द्रियतिर्यञ्च, मनुष्य और वाणव्यन्तर देवों का कथन (सू. 2078 में उक्त) नैरयिकों के कथन के समान जानना चाहिए। 2083. जोइसियाणं पुच्छा। गोयमा ! णिदायं पि वेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति / से केणठेणं भंते ! एवं बच्चति जोइसिया णिदाय पि वेदणं वेदेति अणिदायं पि वेदणं वेदेति ? गोयमा! जोतिसिया दुविहा पण्णत्ता, तं जहा–माइमिच्छद्दिटिउववण्णगा य अमाइसम्महिट्टिउववण्णगा य, तत्थ णं जे ते माइमिच्छद्दिट्टिउववण्णगा ते णं अणिदायं वेदणं वेदेति, तत्थ णं जे ते अमाइसम्मद्दिट्ठिउववण्णगा ते णं णिदायं वेदणं वेदेति, से तेणठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति जोतिसिया दुविहं पि वेदणं वेदेति / [2083 प्र.] भगवन् ! ज्योतिष्क देव निदावेदना वेदते हैं या अनिदावेदना वेदते हैं ? [2083 उ.] गौतम ! वे निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदावेदना भी वेदते हैं ! [प्र.] भगवन ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि ज्योतिष्क देव निदावेदना भी वेदते हैं और अनिदावेदना भी वेदते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org