________________ 222] [प्रज्ञापनासूत्र 2067. रइया णं भंते ! कि सायं वेदणं वेति असायं वेदणं वेदेति सातासायं वेदणं वेदेति ? गोयमा ! तिविहं पि वेयणं वेदेति / [2067 प्र. भगवन् ! नैरयिक सातावेदना वेदते हैं, असातावेदना वेदते हैं, अथवा साता-असातावेदना वेदते हैं ? [2067 उ.] गौतम ! तीनों प्रकार की वेदना वेदते हैं / 2068. एवं सम्वजीवा जाव वेमाणिया / [2068] इसी प्रकार यावत् वैमानिक तक सभी जीवों की वेदना के विषय में (जानना चाहिए।) विवेचन--सातादि त्रिविध वेदना-सुखरूप वेदना को सातावेदना, दुःखरूप वेदना को असातावेदना और सुख-दुःखरूप वेदना को उभयरूप वेदना कहते हैं / नारक से लेकर वैमानिकदेव पर्यन्त तीनों प्रकार को वेदना वेदते हैं। नारकजीव तीर्थंकर के जन्मदिवस आदि के अवसर पर साता और अन्य समयों में असाता वेदते हैं / पूर्वसांगतिक देवों या असुरों के मधुर-मधुर आलापरूपी अमृत की वर्षा होने पर मन में सातावेदना और क्षेत्र के प्रभाव से, असुर के कठोर व्यवहार से असातावेदना होती है। इन दोनों की अपेक्षा से साता-असातारूप वेदना होती है। सभी जीवों को त्रिविध वेदना होती है। पृथ्वीकायिक आदि को जब कोई उपद्रव नहीं होता, तब वे सातावेदना का अनुभव करते हैं। उपद्रव होने पर असाता का तथा जब एकदेश से उपद्रव होता है, तब साता-असाता-उभयरूप वेदना का अनुभव होता है। देवों को सुखानुभव के समय सातावेदना, च्यवनादि के समय असातावेदना तथा दूसरे देव के वैभव को देखकर मात्सर्य होने से असातावेदना, साथ ही अपनी प्रिय देवी के साथ मधुरालापादि करते समय सातावेदना; यों दोनों प्रकार की वेदना होती है।' पंचम दुःखादि-वेदनाद्वार 2066. कतिविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा वेयणा पण्णत्ता / तं जहा-दुक्खा सुहा अदुक्खसुहा। [2066 प्र.] भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ? [2066 उ.] गौतम ! वह तीन प्रकार की कही गई है / यथा-(१) सुखा, (2) दुःखा और (3) अदुःख-सुखा। 2070. रइया णं भंते ! कि दुक्खं वेदणं वेदेति० पुच्छा। गोयमा ! दुक्खं पि वैदणं वेदेति, सुहं पि वेदणं वेदेति, अदुक्खसुहं पि वेदणं वेदेति / [2070 प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव दुःखवेदना वेदते हैं, सुखवेदना वेदते हैं अथवा अदुःख. असुखावेदना वेदते हैं ? 1. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भाग. 5, पृ. 893-894 (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र 556 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org