Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ पंतीसवाँ वेदनापद |221 तृतीय शारीरादि-वेदनाद्वार 2063. कतिविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता? गोयमा ! तिविहा वेदणा पण्णता / तं जहा-सारीरा 1 माणसा 2 सारीरमाणसा३। [2063 प्र.] भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ? [2063 उ.] गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही गई है / यथा--१. शारीरिक, 2. मानसिक और 3. शारीरिक-मानसिक / 2064. गैरइया णं भंते ! कि सारीरं वेदणं वेदेति माणसं वेदणं वेदेति सारीरमाणसं वेदणं बेति? गोयमा ! सारीरं पि वेयणं बेति, माणसं पि वेदणं वेदेति, सारीरमाणसं पि घेदणं वेदेति / [2064 प्र.] भगवन् ! नैरयिक शारीरिक वेदना वेदते हैं, मानसिक वेदना वेदते हैं अथवा शारीरिक-मानसिक वेदना वेदते हैं ? . __[2064 उ.] गौतम ! वे शारीरिक वेदना भी वेदते हैं, मानसिक वेदना भी वेदते हैं और शारीरिक-मानसिक वेदना भी वेदते हैं / 2065. एवं जाय वेमाणिया। णवर एगिदिय-विलिदिया सारीरं वेदणं वेदेति, णो माणसं वेदणं वेदेति णो सारीरमाणसं वेयणं वेदेति / [2065] इसी प्रकार यावत् वैमानिक पर्यन्त कहना चाहिए। एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय केवल शारीरिक वेदना ही वेदते है, किन्तु मानसिक वेदना या शारीरिक-मानसिक वेदना नहीं वेदते / विवेचन -प्रकारान्तर से त्रिविध वेदना का स्वरूप-शरीर में होने वाली वेदना शारीरिक वेदना, मन में होने वाली वेदना मानसिक तथा शरीर और मन दोनों में होने वाली वेदना शारीरिकमानसिक वेदना कहलाती है। एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर शेष समस्त दण्डकवर्ती जीवों में तीनों ही प्रकार की वेदना पाई जाती है। एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय में मानसिक और शारीरमानसवेदना नहीं होती।' चतुर्थ सातादि-वेदनाद्वार 2066. कतिविहा णं भंते ! वेयणा पण्णत्ता? गोयमा! तिविहा वेयणा पण्णत्ता। तं जहा-साता 1 असाया 2 सायासाया 3 / [2066 प्र.] भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ? [2066 उ.] गौतम ! वह तीन प्रकार की बताई गई है / यथा-(१) साता, (2) असाता और (3) साताअसाता। 1. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भा. 5, पृ. 889 (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. 6, पृ. 1440 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org