________________ 218] [प्रज्ञायनासूत्र प्रथम : शीतादि-वेदनाद्वार 2055. कतिविहा णं भंते ! वेदणा पण्णत्ता ? गोयमा ! तिविहा वेदणा पण्णत्ता / तं जहा-सीता 1 उसिणा 2 सीतोसिणा 3 / [2055 प्र.] भगवन् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ? [2055 उ.] गौतम ! वेदना तीन प्रकार की कही है। यथा-(१) शीतवेदना, (2) उष्णवेदना और (3) शीतोष्णवेदना। 2056. णेरइया गं भंते ! कि सीतं वेदणं वेदेति, उसिणं वेदणं वेदेति, सीतोसिणं वेदणं वेदेति? गोयमा ! सोयं पि वेदणं वेदेति उसिणं पि वेदणं वेदेति, णो सीतोसिणं वेदणं वेदेति / [2056 प्र.] भगवन् ! नरयिक शीतवेदना वेदते हैं, उष्णवेदना वेदते हैं या शीतोष्णवेदना वेदते हैं ? [2056 उ.] गौतम ! (नरयिक) शीतवेदना भी वेदते हैं और उष्णवेदना भी वेदते हैं, शीतोष्णवेदना नहीं वेदते / 2057. [1] केई एक्केकोए पुढवीए वेदणाम्रो भणंति[२०५७-१] कोई-कोई प्रत्येक (नरक-)पृथ्वी में वेदनाओं के विषय में कहते हैं[२] रयणप्पभापुढविणेरइया गं भंते ! 0 पुच्छा। गोयमा ! णो सीयं वेदणं वेदेति, उसिणं वेदणं वेदेति, णो सीतोसिणं वेदणं वेदेति / एवं जाव वालुयप्पभापुढविणेरइया। [2057-2 प्र. भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [2057-2 उ.] गौतम ! वे शीतवेदना नहीं वेदते और न शीतोष्णवेदना वेदते हैं, किन्तु उष्णवेदना वेदते हैं / इसी प्रकार यावत् वालुकाप्रभा (तृतीय नरकपृथ्वी) के नैरयिकों तक कहना चाहिए। [3] पंकप्पभापुढविणेरइयाणं पुच्छा। गोयमा! सीयं पि वेदणं वेति, उसिणं पि वेदणं वेदेति, णो सीसोसिणं वेदणं वेदेति / ते बहुयतरागा जे उसिणं वेदणं वेदेति, ते थोवतरागाजे सीयं वेदणं वेदेति / [2057-3 प्र.] भगवन् ! पंकप्रभापृथ्वी के नैरयिक शीतवेदना वेदते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / [2057-3 उ.] गौतम ! वे शीतवेदना भी वेदते हैं और उष्ण वेदना भी वेदते हैं, किन्तु शीतोष्णवेदना नहीं वेदते / वे नारक बहुत हैं, जो उष्णवेदना वेदते हैं और वे नारक थोड़े-से हैं, जो शीतवेदना वेदते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org