________________ 2121 [प्रज्ञापनासून [5] तत्थ णं जे ते सहपरियारगा देवा तेसि णं इच्छामणे समुप्पज्जति-इच्छामो गं अच्छराहि सद्धि सहपरियारणं करेत्तए, तए णं तेहि देवेहिं एवं मणसीकए समाणे तहेव जाव उत्तरवेउब्वियाई रूवाई विउति, विउम्बित्ता जेणामेव ते देवा तेणामेव उवागच्छंति, तेषामेव उवागच्छित्ता तेसिं देवाणं अदूरसामते ठिच्चा अणुत्तराई उच्चावयाई सद्दाई समुदीरेमाणीप्रो समुदीरेमाणोओ चिट्ठति, तए णं ते देवा ताहि अच्छराहि सद्धि सहपरियारणं करेंति, सेसं तं चेव नाव भुज्जो भुज्जो परिणमंति / [2052-5] उनमें जो शब्दपरिचारक देव होते हैं, उनके मन में इच्छा उत्पन्न होती है कि हम अप्सराओं के साथ शब्दपरिचारणा करना चाहते हैं / उन देवों के द्वारा इस प्रकार मन में विचार करने पर उसी प्रकार (पूर्ववत्) यावत् उत्तरवैक्रिय रूपों की विक्रिया करके जहाँ वे देव होते हैं, वहाँ देवियां जा पहुँचती हैं। फिर वे उन देवों के न अति दुर और त अति निकट रुककर सर्वोत्कृष्ट उच्च-नीच शब्दों का बार-बार उच्चारण करती रहती हैं। इस प्रकार वे देव उन अप्सराओं के साथ शब्दपरिचारणा करते हैं / शेष कथन उसी प्रकार (पूर्ववत् ) यावत् बार-बार परिणत होते हैं। [6] तत्थ णं जे ते मणपरियारगा देवा तेसि इच्छामणे समुपज्जइ-इच्छामो णं अच्छराहि सद्धि मणपरियारणं करेत्तए, तए णं तेहि देवेहि एवं मणसीकए समाणे खिप्पामेव ताओ अच्छराम्रो तस्थगतानो चेव समाणीयो अणुत्तराई उच्चावयाई मणाई संपहारेमाणीप्रो संपहारेमाणोनो चिट्ठति, तए णं ते देवा ताहिं अच्छराहि सद्धि मणपरियारणं करेंति, सेसं हिरवसेसं तं चेव जाव भुज्जो 2 परिणमंति। [2052-6] उनमें जो मन:परिचारक देव होते हैं, उनके मन में इच्छा उत्पन्न होती है- हम अप्सराओं के साथ मन से परिचारणा करना चाहते हैं / तत्पश्चात् उन देवों के द्वारा मन में इस प्रकार अभिलाषा करने पर वे अप्सराएँ शोघ्र ही, वहीं (अपने स्थान पर) रही हुई उत्कृष्ट उच्च-नीच मन को धारण करती हुई रहती हैं। तत्पश्चात् वे देव उन अप्सराओं के साथ मन से परिचारणा करते हैं / शेष सब कथन पूर्ववत् यावत् बार-बार परिणत होते हैं, (यहाँ तक कहना चाहिए / ) सप्तम अल्पबहुत्वद्वार 2053. एतेसि णं भंते ! देवाणं कायपरियारगाणं जाव मणपरियारगाणं अपरियारगाण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा 4 ? गोयमा ! सम्वत्थोवा देवा अपरियारगा, मणपरियारगा संखेज्जगुणा, सहपरियारगा असंखेज्जगुणा, रूबपरियारगा असंखेज्जगुणा, फासपरियारगा असंखेज्जगुणा, कायपरियारगा असंखेज्जगुणा। / पण्णवणाए भगवतीए चउतीसइमं पवियारणापयं समसं // [2053 प्र.] भगवन् ! इन कायपरिचारक यावत् मनःपरिचारक और अपरिचारक देवों में से कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक हैं ? 2[053 उ.] गौतम ! सबसे कम अपरिचारक देव हैं, उनसे संख्यातगुणे मनःपरिचारक देव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org