________________ 192] [प्रज्ञापनासूत्र चतुर्थ : अवधि-प्राभ्यन्तर-बाह्यद्वार 2017. रइया णं भंते ! ओहिस्स कि अंतो बाहिं ? गोयमा ! 'अंतो, नो बाहिं। [2017 प्र.] भगवन् ! क्या नारक अवधि (ज्ञान) के अन्दर होते हैं अथवा बाहर होते हैं ? [2017 उ.] गौतम ! वे (अवधि के) अन्दर (मध्य में रहने वाले) होते हैं, बाहर नहीं। 2018. एवं जाव थणियकुमारा। [2018 प्र.] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार तक जानना चाहिए। 2016. पंचेंदियतिरिक्खजोणियाणं पुच्छा। गोयमा ! णो अंतो, बाहिं। [2016 प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रियतिर्यञ्च अवधि के अन्दर होते हैं अथवा बाहर ? [2016 उ.] गौतम ! वे अन्दर नहीं होते, बाहर होते हैं। 2020. मणसाणं पुच्छा। गोयमा ! अंतो वि बाहिं पि। [2020 प्र.] भगवन् ! मनुष्य अवधिज्ञान के अन्दर होते हैं या बाहर ? [2020 उ.] गौतम ! वे अन्दर भी होते हैं और बाहर भी होते हैं। 2021. वाणमंतर-जोइसिय-वेमाणियाणं जहा रइयाणं (सु. 2017) / [2021] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकदेवों का कथन (सू. 2017 में उक्त) नरयिकों के समान है। विवेचन--आभ्यन्तरावधि और बाह्यावधि : स्वरूप और व्याख्या-जो अवधिज्ञान सभी किसानों में अपने प्रकाश्य क्षेत्र को प्रकाशित करता है तथा अवधिज्ञानी जिस अवधिज्ञान द्वारा प्रकाशित क्षेत्र के भीतर ही रहता है, वह प्राभ्यन्तरावधि कहलाता है। इससे जो विपरीत हो, वह बाह्यअवधि कहलाता है। बाह्यअवधि अन्तगत और मध्यगत के भेद से दो प्रकार है / जो अन्तगत हो अर्थात्प्रात्मप्रदेशों के पर्यन्त भाग में स्थित (गत) हो वह अन्तगत अवधि कहलाता है / कोई अवधिज्ञान जब उत्पन्न होता है, तब वह स्पर्द्धक के रूप में उत्पन्न होता है। स्पर्द्धक उसे कहते हैं, जो गवाक्ष जाल आदि से बाहर निकलने वाली दीपक-प्रभा के समान नियत विच्छेद विशेषरूप है / वे स्पर्द्धक एक जीव के संख्यात और असंख्यात तथा नाना प्रकार के होते हैं। उनमें से पर्यन्तवर्ती आत्मप्रदेशों में सामने, पीछे, अधोभाग या ऊपरी भाग में उत्पन्न होता हुअा अवधिज्ञान प्रात्मा के पर्यन्त में स्थित हो जाता है, इस कारण वह अन्तगत कहलाता है / अथवा औदारिक शरीर के अन्त में जो गतस्थित हो. वह अन्तगत कहलाता है, क्योंकि वह औदारिक शरीर को अपेक्षा से कदाचित् एक दिशा में जानता है। अथवा समस्त प्रात्मप्रदेशों में क्षयोपशम होने पर भी जो अवधिज्ञान औदारिक शरीर के अन्त में यानी किसी एक दिशा से जाना जाता है, वह अन्तगत अवधिज्ञान कहलाता है / अन्तगत अवधि तीन प्रकार का होता है-(१) पुरतः, (2) पृष्ठतः, (3) पार्वतः / मध्यगत अवधि उसे कहते हैं, जो प्रात्मप्रदेशों Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org