Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ तेतीसवाँ अवधिपद [189 क्रम अवधिज्ञानयोग्य जीवों के नाम जानने-देखने की जघन्य क्षेत्रसीमा उत्कृष्ट क्षेत्रसीमा 7 तमःप्रभापृथ्वीनारक एक गाऊ डेढ़ माऊ 8 तमस्तमःप्रभापृथ्वीनारक आधा गाऊ एक गाऊ 9 असुरकुमारदेव पच्चीस योजन असंख्यात द्वीप-समुद्र 10 नागकुमारदेव संख्यात द्वीप-समुद्र 11 सुपर्ण कुमार से स्तनितकुमार तक के देव 12 तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय अंगुल के असंख्यातवें भाग असंख्यात द्वीपसमुद्र 13 मनुष्य अलोक में लोक प्रमाण असंख्यात खण्ड (परमावधि की अपेक्षा से) 14 वाणव्यन्तर पच्चीस योजन संख्यात द्वीपसमुद्र 15 ज्योतिष्कदेव संख्यात द्वीपसमुद्र 16 सौधर्मदेव अगुल के असंख्यातवें भाग नीचे रत्नप्रभापथ्वी के निचले चरमान्त (उपपात के समय पूर्व भव सम्बन्धी तक, तिरछे असंख्यात द्वीप-समुद्र तक, सर्व जघन्य अवधि की अपेक्षा से) ऊपर अपने विमानों तक 17 ईशानदेव सौधर्मवत् 18 सनत्कुमारदेव नीचे शर्कराप्रभा के निचले चरमान्त तक, शेष सब सौधर्मवत् / 19 माहेन्द्रदेव सनत्कुमारवत् 20 ब्रह्मलोक और लान्तकदेव नीचे तीसरी पथ्वी के निचले चरमान्त तक, शेष सब सौधर्मवत् 21 महाशुक्र, सहस्रारदेव नीचे चौथी पंकप्रभा के निचले चरमारत तक, शेष सौधर्म वत् 22 ग्रानत, प्राणत, आरण, अच्युत नीचे पंचमी धूमप्रभापृथ्वी के निचले चरमान्त तक, शेष पूर्ववत् 23 अधस्तन, मध्यम वेयकदेव नीचे छठी तम प्रभापृथ्वी के निचले चरमान्त तक, शेष सौधर्मवत् / 24 उपरिम घेवेयकदेव नीचे सातवी नरक के निचले चरमान्त 25 अनुत्तरौपपातिकदेव सम्पूर्ण लोकताडी तक, तिरछे और ऊपर सौधर्मवत् जानते देखते हैं।' 1. (क) पण्णवणासुत्तं भा. 1 (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. 415 से 417 तक (ख) प्रज्ञापनासून (प्रमेयबोधिनी टीका) मा. 5, प.७९० से 501 तक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org