________________ 188] [प्रज्ञापनासूत्र __2004. प्राणय-पाणय-आरण-अच्चुयदेवा अहे जाव पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए हेछिल्ले चरिमंते। [2004] आनत, प्राणत, पारण और अच्युतदेव नीचे--यावत् पांचवीं धूमप्रभापृथ्वी के निचले चरमान्त (पर्यन्त जानते-देखते हैं।) 2005. हेट्ठिम-मज्झिमगेवेज्जगदेवा अहे छट्टाए तमाए पुढवीए हेढिल्ले चरिमंते / [2005] निचले और मध्यम अवेयकदेव यावत् नीचे छठी तमःप्रभापृथ्वी के निचले चरमान्त (पर्यन्त क्षेत्र को जानते-देखते हैं।) 2006. उवरिमगेबेज्जगदेवा णं भंते ! केवतियं खेत्तं प्रोहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं अहेसत्तमाए पुढबीए हेदिल्ले चरिमंते, तिरियं जाव प्रसंखेज्जे दीव-समुद्दे, उड्ढं जाव सगाई विमाणाई प्रोहिणा जाणंति पासंति / [2006 प्र.] भगवन् ! उपरिम ग्रैवेयकदेव अवधि (ज्ञान) से कितने क्षेत्र को जानतेदेखते हैं ? [2006 उ.] गौतम ! वे जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को और उत्कृष्ट नीचे अधःसप्तमपृथ्वी के निचले चरमान्त (पर्यन्त), तिरछे यावत् असंख्यात द्वीप-समुद्रों को तथा ऊपर यावत् अपने विमानों तक (के क्षेत्र को) अवधि (ज्ञान) से जानते-देखते हैं / 2007. अणुत्तरोबवाइयवेवा णं भंते ! केवतियं खेत्तं प्रोहिणा जाणंति यासंति ? गोयमा ! संभिन्न लोगणालि प्रोहिणा जाणंति पासंति / [2007 प्र.] भगवन् ! अनुत्तरौपपातिकदेव अवधि (ज्ञान) द्वारा कितने क्षेत्र को जानते देखते हैं ? [2007 उ.] गौतम ! वे सम्पूर्ण (सम्भिन्न) (चौदह रज्जू-प्रमाण) लोकनाडी को अवधि (ज्ञान) से जानते-देखते हैं। विवेचन-विभिन्न जीवों की अवधिज्ञान से जानने-देखने की क्षेत्रमर्यादा-अवधिज्ञान के योग्य समस्त नारकों, देवों, मनुष्यों तथा पंचेन्द्रियतिर्यञ्चों की अवधिज्ञान द्वारा जानने-देखने की क्षेत्रमर्यादा सू. 1983 से 2007 तक में बताई गई है। ___इसे सुगमता से समझने के लिए निम्नलिखित तालिका देखिए क्रम अवधिज्ञानयोग्य जीवों के नाम जानने-देखने की जघन्य क्षेत्रसीमा उत्कृष्ट क्षेत्रसीमा 1 समुच्चय नारक प्राधा गाऊ चार गाऊ 2 रत्नप्रभापृथ्वीनारक साढ़े तीन गाऊ चार माऊ 3 शर्कराप्रभापृथ्वीनारक तीन गाऊ साढ़े तीन गाऊ 4 बालुकाप्रभापृथ्वीनारक ढाई गाऊ तीन गाऊ 5 पंकप्रभापृथ्वीनारक दो गाऊ ढाई गाऊ 6 धूमप्रभापृथ्वीनारक डेढ़ गाऊ दो गाऊ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org