________________ 186] [प्रज्ञापनासूत्र [1960 प्र.] भगवन् ! अधःसप्तम (तमस्तम:प्रभा) पृथ्वी के नैरयिक कितने क्षेत्र को अवधि (ज्ञान) से जानते-देखते हैं ? [1990 उ.] गौतम ! वे जघन्य प्राधा गाऊ और उत्कृष्ट एक गाऊ (क्षेत्र को) अवधि (ज्ञान) से जानते-देखते हैं। . 1661. असुरकुमारा णं भंते ! ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति पासंति ? गोयमा ! जहण्णणं पणुवीसं जोयणाई, उक्कोसेणं असंखेज्जे दीव-समुद्दे प्रोहिणा जाणंति पासंति। [1961 प्र.] भगवन् ! असुर कुमारदेव अवधि(ज्ञान) से कितने क्षेत्र को जानते-देखते हैं ? [1991 उ.] गौतम ! वे जघन्य पच्चीस योजन और उत्कृष्ट असंख्यात द्वीप-समुद्रों (पर्यन्त क्षेत्र को) अवधि (ज्ञान) से जानते-देखते हैं। 1962. णागकुमारा णं जहण्णेणं पणुवीसं जोयणाई, उक्कोसेणं संखेज्जे दीव-समुद्दे प्रोहिणा जाणंति पासंति। / [1662 प्र.] भगवन् ! नागकुमारदेव अवधि(ज्ञान) से कितने क्षेत्र को जानते-देखते हैं ? [1662 उ.] गौतम ! वे जघन्य पच्चीस योजन और उत्कृष्ट संख्यात द्वीप-समुद्रों (पर्यन्त क्षेत्र) को अवधि (ज्ञान) से जानते देखते हैं / 1663. एवं जाव थणियकुमारा। [1993] इसी प्रकार (सुपर्णकुमार से लेकर) यावत् स्तनितकुमार पर्यन्त (अवधिज्ञान से जानने-देखने की जघन्य उत्कृष्ट सीमा का कथन करना चाहिए।) 1964. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया णं भंते ! केवतियं खेतं ओहिणा जाति पासंति ? गोयमा! जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभागं, उक्कोसेणं असंखेज्जे दोव-समुद्दे। [1964 प्र.] भगवन् ! पचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक जीव अवधि (ज्ञान) से कितने क्षेत्र को जानते-देखते हैं ? [1994 उ.] गौतम ! वे जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को और उत्कृष्ट असंख्यात द्वीप-समुद्रों (तक) को अवधि(ज्ञान) से जानते-देखते हैं / 1995. मणसा णं भंते ! ओहिणा केवतियं खेत्तं जाणंति पासंति ? ___ गोयमा ! जहणणं अंगुलस्स असंखेज्जतिभाग, उक्कोसेणं असंखेज्जाई अलोए लोयपमाणमेत्ताई खंडाई प्रोहिणा जाणंति पासंति / [1665 प्र.] भगवन् ! मनुष्य अवधि (ज्ञान) द्वारा कितने क्षेत्र को जानता-देखता है ? [1995 उ.] गौतम ! जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग क्षेत्र को और उत्कृष्ट अलोक में लोक प्रमाण असंख्यात खण्डों को अवधि (ज्ञान) द्वारा जानता-देखता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org