________________ [प्रज्ञापनासूत्र 1947. बेइंदियाणं भंते ! कतिविहा पासणया पण्णत्ता ? गोयमा ! एगा सागारपासणता पण्णत्ता। [1947 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों की कितने प्रकार की पश्यत्ता कही गई है ? [1947 उ.] गौतम ! उनमें एकमात्र साकारपश्यत्ता कही गई है। 1948. बेइंदियाणं भंते ! सागारपासणया कतिविहा पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा--सुतणाणसागारपासणता य सुयअण्णाणसागारपासणता य। [1948 प्र.] भगवन् ! द्वीन्द्रिय जीवों की साकारपश्यत्ता कितने प्रकार की कही है ? [1648 उ.] गौतम ! दो प्रकार की कही गई है। यथा-श्रुतज्ञानसाकारपश्यत्ता और श्रुत-अज्ञानसाकारपश्यत्ता / 1946. एवं तेहंदियाण वि / [1646] इसी प्रकार त्रीन्द्रिय जीवों को (वक्तव्यता) भी (जाननी चाहिए।) 1950. चारिदियाणं पुच्छा। गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-सागारपासणता य अणागारपासणता य। सागारपासणता जहा बेइंदियाणं (सु. 1647-48) / [1650 प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों की पश्यत्ता कितने प्रकार की कही गई है ? [1950 उ.] गौतम ! उनको पश्यत्ता दो प्रकार की कही गई है / यथा--साकारपश्यत्ता और अनाकारपश्यत्ता। इनको साकारपश्यत्ता द्वीन्द्रियों को (सू. 1947-48 में कहे अनुसार) साकारपश्यत्ता के समान जाननी चाहिए। 1951. चरिदियाणं भंते ! प्रणागारपासणता कतिविहा पण्णता? गोयमा ! एगा चक्खुदंसणअणागारपासणया पण्णता। [1651 प्र.] भगवन् ! चतुरिन्द्रिय जीवों की अनाकारपश्यत्ता कितने प्रकार की कही [1951 उ.] गौतम ! उनकी एकमात्र चक्षुदर्शन-अनाकारपश्यत्ता कही है / 1952. मणूसाणं जहा जीवाणं (सु. 1636) / _[1952] मनुष्यों की साकारपश्यत्ता और अनाकारपश्यत्ता) का कथन (सू. 1939 में उक्त) समुच्चय जीवों के समान है / 1953. सेसा जहा रइया (सु. 1940-42) जाव वेमाणिया। [1653] वैमानिक पर्यन्त शेष समस्त दण्डकों की पश्यत्ता-सम्बन्धी वक्तव्यता (सू. 194042 में उक्त] नैरयिकों के समान कहनी चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org