________________ उनतीसवां उपयोगपद [159 [1935] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के विषय में नैरयिकों के समान (कथन करना चाहिए !) विवेचन-प्रस्तुत (सू. 1918 से 1635 तक) आठ सूत्रों में समुच्चय जीवों और चौबीसदण्डकवर्ती जीवों में साकारोपयोगयुक्तता एवं अनाकारोपयोगयुक्तता का कारणपूर्वक कथन किया गया है / कथन स्पष्ट है। // प्रज्ञापना भगवती का उनतीसवाँ उपयोगपद समाप्त // 10 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org