________________ बाईसवाँ क्रियापद] [509 [4] पंचेंदियतिरिक्खजोगियस्स आइल्लियानो तिणि वि परोपरं णियमा कन्जंति, जस्स एयाओ कज्जति तस्स उवरिल्लाओ दो भइज्जंति, जस्स उवरिल्लाओ दोष्णि कज्जति तस्स एताओ तिणि वि णियमा कज्जति; जस्स अपच्चक्खाणकिरिया तस्स मिच्छादसणवत्तिया सिय कज्जति सिय णो कज्जति, जस्स पुण मिच्छादसणवत्तिया किरिया कज्जति तस्स अप्पच्चक्खाणकिरिया णियमा कज्जति / [1635-4] पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक को प्रारम्भ की तीन क्रियाएँ परस्पर नियम से होती हैं। जिसको ये (तीनों क्रियाएँ) होती हैं, उसको आगे की दो क्रियाएँ (अप्रत्याख्यानिकी एवं मिथ्यादर्शनप्रत्यया) विकल्प (भजना) से होती हैं। जिसको, आगे की दोनों क्रियाएँ होती हैं, उसको ये (प्रारम्भ की) तीनों (क्रियाएँ) नियम से होती हैं। जिसको अप्रत्याख्यान क्रिया होती है, उसको मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया कदाचित् होती है, कदाचित् नहीं होती। (किन्तु) जिसको मिथ्यादर्शनप्रत्यया क्रिया होती है, उसको अप्रत्याख्यानक्रिया अवश्यमेव (नियम से) होती है / [5] मणूसस्स जहा जीवस्स। [1635-5] मनुष्य में (पूर्वोक्त क्रियाओं के सहभाव का कथन) (सामान्य) जीव में (क्रियानों के सहभाव के कथन की तरह (समझना चाहिए / ) [6] वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियस्स जहा गेरइयस्स / [1635-6] वानव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक देव में (क्रियाओं के परस्पर सहभाव का कथन) नैरयिक (में क्रियाओं के सहभाव-कथन) के समान (समझना चाहिए / ) 1636. जं समयं णं भंते ! जीवस्स आरंभिया किरिया कज्जति तं समयं पारिग्गहिया किरिया कज्जति ? एवं एते जस्स 1 जं समयं 2 जं देसं 3 जं पदेसं णं 4 चत्तारि दंडगा यया / जहा रइयाणं तहा सव्वदेवाणं णेयव्वं जाव वेमाणियाणं / [1636 प्र.] भगवन ! जिस समय जीव के प्रारम्भिकी क्रिया होती है, (क्या) उस समय पारिग्रहिकी क्रिया होती है ? [उ. इसी तरह (क्रियाओं के परस्पर सहभाव के समान समझना चाहिए / ) इस प्रकार--(१) जिस जीव के, (2) जिस समय में, (3) जिस देश में और (4) जिस प्रदेश में, यों चार दण्डकों के पालापक कहने चाहिए। जैसे नैरयिकों के विषय में ये चारों दण्डक कहे उसी प्रकार समस्त देवों के विषय में यावत् वैमानिकों तक कहने चाहिए / विवेचन-जीव प्रादि में आरम्भिकी आदि क्रियाओं का सहभाव-प्रस्तुत है सत्रों (सू. 1628 से 1636 तक) में समुच्चय जीव में, तथा नारकादि चौवीस दण्डकों में प्रारम्भिकी आदि 5 क्रियाओं के परस्पर सहभाव की चर्चा की गई है। क्रियाओं का सहभाव : क्यों अथवा क्यों नहीं? जिसके प्रारम्भिकी क्रिया होती है, उसके पारिग्रहिकी विकल्प से होती है, क्योंकि पारिग्रहिकी प्रमत्तसंयत के नहीं होती, शेष के होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org