Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 50] [प्रज्ञापनासूत्र [24] सुक्किलवण्णनामए पुच्छा। गोयमा ! जहणणं सागरोवमस्स एगं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखिज्जइभागेणं ऊणगं, उक्कोसेणं दस सागरोवमकोडाकोडीनो; दस य वाससयाई अबाहा० / [1702-24 प्र.] शुक्लवर्णनामकर्म की स्थिति-सम्बन्धी प्रश्न ? [1702-24 उ.] गौतम! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति दस कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल दस सौ (एक हजार) वर्ष का है। [25] हालिद्दवण्णणामए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स पंच अट्ठावीसतिभागा पलिग्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं अद्धतेरस सागरोवमकोडाकोडोप्रोअद्धतेरस य वाससयाई अबाहा० / [1702-25 प्र.] पीत (हारिद्र) वर्णनामकर्म की स्थिति के सम्बन्ध में पृच्छा ? [1702-25 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के 28 भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति साढ़े बारह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल साढ़े बारह सौ वर्ष का है / [26] लोहियवण्णणामए पं० पुच्छा। गोयमा ! जहण्णणं सागरोवमस्स छ अट्ठावीसतिभागा पलिश्रोवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणगा, उक्कोसेणं पण्णरस सागरोवमकोडाकोडीनो; पण्णरस य वाससयाई अबाहा० / [1702-26 प्र.] भगवन् ! रक्त (लोहित) वर्णनामकर्म को स्थिति कितने काल की कही है ? [1702-26 उ.] गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के 6 भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति पन्द्रह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल पन्द्रह सौ वर्ष का है। [27] गोलवण्णणामए पुच्छा। गोयमा ! जहण्णेणं सागरोवमस्स सत्त अट्ठावीसतिभागा पलिओवमस्स असंखेज्जइभागेणं ऊणया, उक्कोसेणं अट्ठारस सागरोवमकोडाकोडीमो; अट्ठारस य वाससयाई अबाहा० / [1702-27 प्र.] नीलवर्णनामकर्म की स्थिति-विषयक प्रश्न ? 1702-27 उ. गौतम ! इसकी जघन्य स्थिति पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के 6 भाग की है और उत्कृष्ट स्थिति साढ़े सत्तरह कोडाकोडी सागरोपम की है। इसका अबाधाकाल साढ़े सत्तरह सौ वर्ष का है। [28] कालवष्णणामए जहा सेवट्टसंघयणस्स (सु. 1702 [22]) / [1702-28] कृष्णवर्णनामकर्म की स्थिति (सू. 1702-22 में उल्लिखित) सेवा िसंहनननामकर्म की स्थिति के समान है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org