________________ 72] प्रिज्ञापनासूत्र [1735-1 प्र.] भगवन् ! संज्ञीपंचेन्द्रिय जीव निद्रापंचककर्म का कितने काल का बन्ध करते हैं ? [1735-1 उ.] गौतम ! वे जघन्य अन्तःकोडाकोडी सागरोपम का और उत्कृष्ट तीस कोडाकोडी सागरोपम का बन्ध करते हैं। इनका तीन हजार वर्ष का अबाधाकाल है०, इत्यादि पूर्ववत् / [2] दसणचउक्कस्स जहा णाणावरणिज्जस्स / [1735-2] दर्शनचतुष्क का बन्धकाल ज्ञानावरणीयकर्म के वन्धकाल के समान है। 1736. [1] सातावेदणिज्जस्स जहा प्रोहिया ठिती भणिया तहेव भाणियबा इरियावहियबंधयं पडुच्च संपराइयबंधयं च / [1736-1] सातावेदनीयकर्म का बन्धकाल उसकी जी औधिक (सामान्य) स्थिति कही है, उतना ही कहना चाहिए। ऐर्यापथिकबन्ध और साम्परायिकबन्ध की अपेक्षा से (सातावेदनीय का बन्धकाल पृथक्-पृथक्) कहना चाहिए / [2] असातावेयणिज्जस्स जहा णिहापंचगस्स / [1736-2] असातावेदनीय का बन्धकाल निद्रापंचक के समान (कहना चाहिए)। 1737. [1] सम्मत्तवेदणिज्जस्स सम्मामिच्छत्तवेदणिज्जस्स या प्रोहिया ठितो भणिया तंबंधति। [1737-1] वे सम्यक्त्ववेदनीय (मोहनीय) और सम्यगमिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय) की जो औधिक स्थिति कही है, उतने ही काल का बांधते हैं। [2] मिच्छत्तवेदणिज्जस्स जहणेण्णं अंतोसागरोवमकोडाकोडीमो, उक्कोसेणं सतर सागरोवमकोडाकोडीअो; सत्त य वाससहस्साई प्रबाहा० / [1737-2] वे मिथ्यात्ववेदनीय का जघन्य अन्त कोडाकोडी सागरोपम का और उत्कृष्ट 70 कोडाकोडी सागरोपम का बन्ध करते हैं। उनका अबाधाकाल सात हजार वर्ष का है, इत्यादि पूर्ववत् / [3] कसायबारसगस्स जहण्णेणं एवं चेव, उक्कोसेणं चत्तालीसं सागरोवमकोडाकोडीयो; चत्तालीस य वासंसहस्साई अबाहा० / [1037-3] कषायद्वादशक (बारह कषायों) का बन्धकाल जधन्यत: इसी प्रकार (अन्तः कोटाकोटि सागरोपम प्रमाण) है और उत्कृष्टतः चालीस कोडाकोडी सागरोपम का है। इनका अबाधाकाल चालीस हजार वर्ष का है, इत्यादि पूर्ववत् / [4] कोह-माण-माया-लोभसंजलणाए य दो मासा मासो अद्धमासो अंतोमुहत्तो एयं जहण्णगं उक्कोसगं पुण जहा कसायबारसगस्स। [1737-4] संज्वलन क्रोध-मान-माया-लोभ का जघन्य बन्ध क्रमशः दो मास, एक मास, अर्द्ध मास और अन्तर्मुहूर्त का होता है तथा उत्कृष्ट बन्ध कषाय-द्वादशक के समान होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org