Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 82 [प्रज्ञापनासूत्र नारक जीव ज्ञानावरणीय का बन्ध करता हुआ जब आयुकर्म का बन्ध नहीं करता तब सात का बंध करता है और जब प्रायुष्यकर्म का बंध करता है, तब आठ कर्मप्रकृतियों का बंधक होता है / नारक जीव में छह कर्मप्रकृतियों के बंध का विकल्प सम्भव नहीं है, क्योंकि वह सूक्ष्मसम्परायगुणस्थान को प्राप्त नहीं कर सकता। अतः मनुष्य को छोड़कर शेष सभी प्रकार के जीवों (दण्डकों) में पूर्वोक्त दो विकल्प (सात या पाठ के बंध के) ही समझने चाहिए, क्योंकि उन्हें सूक्ष्मसम्परायगुणस्थान प्राप्त न होने से उनमें तीसरा (छह प्रकृतियों के बंध का) विकल्प सम्भव नहीं है / मनुष्य का कथन सामान्य जीव के समान है / अर्थात् मनुष्य में तीनों भंग पाये जाते हैं। (3) बहुत्व की अपेक्षा से समुच्चय जीव के ज्ञानावरणीय दर्शनावरणीय कर्मबन्ध के साथ अन्य कर्मबन्धन-सभी जीव आयुकर्म बंध के अभाव में सात के और उसके बंध के सद्भाव में पाठ कर्मप्रकृतियों के बंधक होते हैं। बहुत्व-विवक्षा में सात या आठ के बंधक तो सदैव बहुसंख्या में पाये जाते हैं, किन्तु छह के बंधक किसी काल-विशेष में ही पाये जाते हैं और किसी काल में नहीं पाये जाते, क्योंकि उसका अन्तरकाल छह महीने तक का कहा गया है। जब एक षड्विधबंधक नहीं पाया जाता, तब प्रथम भंग होता है, जब एक पाया जाता है तो द्वितीय और जब बहुत षड् बंधक जीव पाये जाते हैं, तब तृतीय विकल्प होता है। बेदनीय कर्मबन्ध के साथ अन्य कर्मप्रकृतियों के बन्ध का निरूपण 1763. [1] वेयणिज्जं बंधमाणे जीवे कति कम्मपगडीओ बंधति ? / गोयमा ! सत्तविहबंधए वा अट्टविहबंधए वा छन्विबंधए वा एगविहबंधए वा। [1763-1 प्र.] भगवन् ! वेदनीयकर्म को बाँधता हुअा एक जीव कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधता है ? [1763-1 उ.] गौतम ! सात का, आठ का, छह का अथवा एक प्रकृति का बन्धक होता है / [2] एवं मणसे वि। [1763-2] मनुष्य के सम्बन्ध में भी ऐसा ही कहना चाहिए। [3] सेसा गारगादीया सत्तविहबंधगा य प्रविहबंधगा य जाव वेमाणिए / [1763-3] शेष नारक आदि सप्तविध और अढविध बन्धक होते हैं, वैमानिक तक इसी प्रकार कहना चाहिए। 1764. जीवा गं भंते ! वेयणिज्ज कम्म० पुच्छा। गोयमा ! सम्वे वि ताव होज्जा सत्तविहबंधगा य अट्ठविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगे य 1 अहवा सत्तविहबंधगा य अविहबंधगा य एगविहबंधगा य छविहबंधगा य 2 / [1764 प्र.] भगवन् ! बहुत जीव वेदनीयकर्म को बांधते हुए कितनी कर्मप्रकृतियाँ बांधते हैं ? [1764 उ.] गोतम ! सभी जीव सप्तविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, एक प्रकृतिबन्धक और एक जीव छह प्रकृतिबन्धक होता है 1, अथवा बहुत सप्तविधबन्धक, अष्टविधबन्धक, एकविधबन्धक या छह विधबन्धक होते हैं 2 / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org