________________ छठवीसवाँ कर्मवेवबन्धपद] [95 कर्म का वेदन करता हा जीव 7, 8 या 6 का बन्धक होता है, क्योंकि सूक्ष्मसम्पराय अवस्था में भी मोहनीयकर्म का वेदन होता है, मगर बन्ध नहीं होता / इसी प्रकार का कथन मनुष्य पद में भी करना चाहिए / नारक आदि पदों में सूक्ष्मसम्परायावस्था प्राप्त न होने से वे 7 या 8 के ही बन्धक होते हैं। बहुत्व की अपेक्षा से-जीव पद में पूर्ववत् तीन भंग | ब. ब. ब. ए. | ब. ब. नारकों और भवनपति देवों में- ब. ब. | ए = तीन भंग पृथ्वीकायादि स्थावरों में प्रथम भंग-ब. ब. विकलेन्द्रिय से वैमानिक तक में-नारकों के समान तीन भंग / मनुष्यों में नौ भंग ज्ञानावरणीय कर्म के साथ बन्धक के समान / ' // प्रज्ञापना भगवती का छन्वीसवाँ पद समाप्त / 1. (क) पण्णवणासुत्तं भा. 1 (मू. पा. टि.), पृ. 390 (ख) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. 5, पृ. 517 से 519 तक (ग) प्रज्ञापना. (मलय. टीका) पद 26 (अभि. राज. कोष भा. 3, पृ. 296) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org