Book Title: Agam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Stahanakvasi
Author(s): Shyamacharya, Madhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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________________ 15.) प्रज्ञापनासूत्र उपयोग (सू. 1908-10) पश्यत्ता (1936-38) 1 साकारोपयोग 1 साकार-पश्यत्ता (1) आभिनिबोधिक ज्ञान-साकारोपयोग / xx (2) श्रुतज्ञान-साकारोपयोग (1) श्रुतज्ञान-साकारपश्यत्ता (3) अवधिज्ञान-साकारोपयोग प्रवधिज्ञान-साकारपश्यत्ता (4) मन:पर्यवज्ञान-साकारोपयोग मनःपर्यवज्ञान-साकारपश्यत्ता (5) केवलज्ञान-साकारोपयोग (4) केवलज्ञान साकारपश्यत्ता मत्यज्ञानावरण-साकारोपयोग (7) श्रुताज्ञानावरण-साकारोपयोग (5) श्रुताज्ञान-साकारपश्यत्ता (8) विभंगज्ञानावरण-साकारोपयोग (6) विभंगज्ञान-साकारपश्यत्ता 2. अनाकारोपयोग 2. अनाकारपश्यत्ता (1) चक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग (1) चक्षुदर्शन-अनाकारपश्यत्ता (2) प्रचक्षुदर्शन-अनाकारोपयोग (3) अवधिदर्शन-अनाकारोपयोग (2) अवधिदर्शन-अनाकारपश्यत्ता (4) केवलदर्शन अनाकारोपयोग (3) केवलदर्शन-अनाकारपश्यत्ता' * साकारोपयोग एवं अनाकारोपयोग का लक्षण प्राचार्य मलयगिरि ने इस प्रकार किया है सचेतन या अचेतन वस्तु में उपयोग लगाता हुआ आत्मा जब वस्तु का पर्यायसहित बोध करता है, तब वह उपयोग साकार कहलाता है, तथा वस्तु का सामान्य रूप से ज्ञान होना प्रनाकारोपयोग है। * साकारपश्यत्ता और अनाकारपश्यत्ता में भी साकार और अनाकार शब्दों का अर्थ तो उपर्युक्त ही है, किन्तु पश्यत्ता में वस्तु का त्रैकालिक बोध होता है, जबकि उपयोग में वर्तमानकालिक ही बोध होता है। * इसके पश्चात् उनतीसवें पद में नारक से वैमानिकपर्यन्त चौबीस दण्डकों में से किस-किस जीव ___में कितने उपयोग पाये जाते हैं ? इसका प्ररूपण किया गया है। * तीसवें पश्यत्ता पद में इसके भेद-प्रभेदों का प्रतिपादन करके नारक से लेकर वैमानिक पर्यन्त जीवों में से किसमें कितने प्रकार की पश्यत्ता है ? इसका प्ररूपण किया गया है। * उनतीसवें पद में पूर्वोक्त प्ररूपण के अनन्तर चौबीस दण्डकवर्ती जीवों के विषय में प्रश्नोत्तरी प्रस्तुत को गई है कि कौनसा जोव साकोरोपयुक्त है या अनाकारोपयुक्त ? इसी प्रकार तीसवें पद में प्रश्नोत्तरी है कि जीव साकार पश्यत्तावान् है या अनाकार पश्यत्तावान् ? 3 1. पण्णवणासुत्तं भा. 2 (परिशिष्ट-प्रस्तावनात्मक), पृ. 138 2. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष भा. 2, पृ. 860 -3. पण्णवणासुत्तं भा. 1 (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. 408-9 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org